नई दिल्ली: आज श्री कृष्ण जन्माष्टमी की धूम पूरे देश में मची है। सभी भक्त हर्षोल्लास से भगवान के जन्म की खुशियां मना रहे हैं। श्री कृष्ण की कथा सभी को प्रेरणा देने वाली है लेकिन कुछ लोगों के मन उन्हे लेकर सवाल भी रहते है। उनमें से एक सवाल है कि महाभारत में द्रौपदी […]
नई दिल्ली: आज श्री कृष्ण जन्माष्टमी की धूम पूरे देश में मची है। सभी भक्त हर्षोल्लास से भगवान के जन्म की खुशियां मना रहे हैं। श्री कृष्ण की कथा सभी को प्रेरणा देने वाली है लेकिन कुछ लोगों के मन उन्हे लेकर सवाल भी रहते है। उनमें से एक सवाल है कि महाभारत में द्रौपदी के चीर हरण के समय कृष्ण खुद उसे बचाने क्यों नही आए। कृष्ण द्रौपदी के बुलावे का इंतजार क्यों कर रहे थें? आज हम आपको इसका कारण बताएंगे।
उद्धव गीता या उद्धव भागवत के अनुसार, श्री कृष्ण के मित्र और चचेरे भाई उद्धव ने श्री कृष्ण से द्रौपदी के चीरहरण के बारे में कई कठोर सवाल पूछे थे। उद्धव गीता के अनुसार, श्री कृष्ण के मित्र उद्धव पूछते हैं “हे केशव! जब हस्तिनापुर में द्रौपदी के चीरहरण की इतनी वीभत्स घटना घट रही थी, तो आप तुरंत जाकर द्रौपदी को क्यों नहीं बचा पाए? आपने द्रौपदी के बुलाने का इंतज़ार क्यों किया?” अपने मित्र उद्धव का यह प्रश्न सुनकर श्री कृष्ण मुस्कुराए।
उद्धव के प्रश्नों पर श्री कृष्ण मुस्कुराये और बोले- “यह इस सृष्टि का नियम है कि बुद्धिमान व्यक्ति ही जीतता है। जो बुद्धि का प्रयोग करके जीतता है। दुर्योधन के पास पासे खेलने के लिए अपार धन था किन्तु पासे खेलने की बुद्धि उसमें नहीं थी, इसलिए उसने अपने मामा शकुनि पर विश्वास करके उसे अपनी ओर से पासे खेलने को कहा। यह उसका बुद्धि से लिया गया निर्णय था जबकि युधिष्ठिर सहित पांचों पांडव यह खेल खेलना नहीं जानते थे किन्तु उन्होंने बुद्धि का प्रयोग नहीं किया और मुझे एक बार भी अपनी ओर से खेलने को नहीं कहा।
धर्मराज युधिष्ठिर जानते थे कि पासे सामाजिक बुराई को बढ़ावा देने वाला खेल है किन्तु फिर भी वे यह खेल खेलते रहे। युधिष्ठिर इस खेल को मुझसे छिपा कर रखना चाहते थे। उन्होंने सोचा कि यदि मैं उस कक्ष में उपस्थित न होता तो मुझे कभी पता नहीं चलता कि उन्होंने राज्य वापस पाने के लिए बुराई का मार्ग चुना है, इसलिए उन्होंने मुझे सभा में बुलाए जाने तक वहां आने से मना कर दिया। युधिष्ठिर ने मुझसे वचन लिया कि मैं उनकी ओर से पासे नहीं खेलूंगा। मैं सभा में तभी आऊंगा जब पांडव परिवार मुझे बुलाएगा।” इसीलिए मैं सभा में नहीं गया। युधिष्ठिर ने अपने दुर्भाग्य को स्वयं आमंत्रित किया।”