Chhath Pooja के लिए क्यों नहीं चाहिए होते पंडित जी?

नई दिल्ली : दिवाली के छठे दिन से शुरू हो जाने वाले छठ पर्व की शुरुआत हो चुकी है. बिहार, उत्तरप्रदेश और झारखण्ड के लोगों के लिए ये पर्व नहीं बल्कि एक भाव है जिसे वह पूरे साल संजों के रखते हैं. साल के अंत में आने वाले इस पर्व का उत्साह पूरे देश में […]

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Chhath Pooja के लिए क्यों नहीं चाहिए होते पंडित जी?

Riya Kumari

  • October 29, 2022 2:48 pm Asia/KolkataIST, Updated 2 years ago

नई दिल्ली : दिवाली के छठे दिन से शुरू हो जाने वाले छठ पर्व की शुरुआत हो चुकी है. बिहार, उत्तरप्रदेश और झारखण्ड के लोगों के लिए ये पर्व नहीं बल्कि एक भाव है जिसे वह पूरे साल संजों के रखते हैं. साल के अंत में आने वाले इस पर्व का उत्साह पूरे देश में देखा जा सकता है. भारतीय संस्कृति में सबसे कठिन व्रत की शुरुआत इस साल 28 अक्टूबर से हुई है. जहां यह पर्व अगले चार दिनों तक चलेगा. आज छठ का दूसरा दिन यानि खरना है.

इसलिए नहीं होती पंडित की आवश्यकता

चार दिनों में छठ पूजा में क्या-क्या होता है इसकी जानकारी आपको होगी ही. लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये पूजा एकमात्र ऐसी पूजा है जिसमें पंडितों की भागीदारी आवश्यक नहीं होती है. इसके पीछे का कारण ये है कि छठ के दौरान सूर्य देवता की पूजा की जाती है. सूर्य भगवान को प्रत्यक्ष देव के रूप में पूजा जाता है उनके और मनुष्य के बीच किसी भी संवाद को करने के लिए किसी माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है. यही कारण है कि सूर्य को अर्घ्य देते हुए व्रती स्वयं मंत्रों का जाप करते हैं. छठ इस बात को भी सिखाता है कि सूर्योदय और सूर्यास्त दोनों एक सामान ही महत्वपूर्ण हैं. इस लिहाज से भी इस पर्व में एक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पूजा जरूरी होती है.

हालांकि छठ के दौरान पंडितों की मदद भी ली जा सकती है. उन्हें किसी भी तरह से प्रतिबंधित नहीं किया गया है. लेकिन अधिकांश लोग खुद ही छठ पूजा किया करते हैं और सूर्य देव, उनकी पत्नी उषा या छठी मैया, प्रकृति, जल और वायु को भक्ति भाव से पूजते हैं.

खरना का महत्त्व

छठ के दूसरे दिन को खरना कहते हैं. इसका अर्थ है शुद्धिकरण जहां इस दिन छठ पूजा का प्रसाद बनाने की परंपरा है. आज भी पूरे दिन महिलाएं व्रत रखती हैं और माता का प्रसाद तैयार करती हैं. इस प्रसाद की ख़ास बात तो ये है कि इस खीर को मिटटी के चूल्हे पर बनाया जाता है. साथ ही प्रसाद तैयार होते ही सबसे पहले व्रती महिलाएं इसे ग्रहण करती हैं फिर इसे बांट दिया जाता है. सूर्यास्त के समय व्रती स्त्रियां नदी और घाटों पर पहुंच जाती हैं और सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. सूर्यदेव को जल और दूध से अर्घ्य देने की परंपरा है. साथ ही इस दिन छठ गीत भी गाए जाते हैं.

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