नई दिल्ली: महाभारत के महायोद्धा और धर्मराज युधिष्ठिर का स्वर्गारोहण, भारतीय पुराणों और धर्मग्रंथों में एक विशेष स्थान रखता है। उनके जीवन की सत्यनिष्ठा और धर्म के प्रति अटूट निष्ठा का वर्णन हर भारतीय जानता है। महाभारत के अनुसार, युधिष्ठिर को स्वर्ग ले जाने के लिए स्वयं देवराज इंद्र अपने दिव्य रथ में आए थे। […]
नई दिल्ली: महाभारत के महायोद्धा और धर्मराज युधिष्ठिर का स्वर्गारोहण, भारतीय पुराणों और धर्मग्रंथों में एक विशेष स्थान रखता है। उनके जीवन की सत्यनिष्ठा और धर्म के प्रति अटूट निष्ठा का वर्णन हर भारतीय जानता है। महाभारत के अनुसार, युधिष्ठिर को स्वर्ग ले जाने के लिए स्वयं देवराज इंद्र अपने दिव्य रथ में आए थे। इस घटना को धर्म की विजय के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। परंतु क्या आप जानते हैं कि केवल युधिष्ठिर ही स्वर्ग यात्रा को क्यों पूरी कर पाए और देवराज इंद्र को देखकर धर्मराज ने क्या कहा था?
महाभारत के अनुसार, युद्ध समाप्त होने के बाद युधिष्ठिर और उनके भाइयों ने अपने जीवन को संन्यास की ओर मोड़ा। पांडवों ने राजपाट का त्याग करके हिमालय की ओर प्रस्थान किया, जिसे स्वर्गारोहण की यात्रा कहा जाता है। इस यात्रा में उनके साथ एक कुत्ता भी था, जो उनके प्रति निष्ठावान था। जब वे यात्रा के अंतिम पड़ाव पर पहुँचे, तभी देवराज इंद्र उनके सामने प्रकट हुए।
जब युधिष्ठिर कुछ ही दूर चले थे, तभी देवराज इंद्र स्वयं अपने दिव्य रथ के साथ वहां प्रकट हुए। इंद्र ने युधिष्ठिर से कहा, “युधिष्ठिर, तुमने अपने जीवन में हमेशा धर्म का पालन किया है। इसलिए, मैं तुम्हें स्वर्ग ले जाने के लिए आया हूं। यह रथ तुम्हारे लिए तैयार है।”लेकिन युधिष्ठिर, जिनका हृदय अपने परिवार और भाई-बंधुओं के प्रति हमेशा समर्पित रहा, ने इंद्र से कहा, “देवराज, मेरे भाई भी मेरे साथ थे और द्रौपदी भी। मार्ग में वे सभी गिर पड़े हैं। क्या मैं उन्हें छोड़कर अकेले स्वर्ग जा सकता हूं?”इंद्र ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, “युधिष्ठिर, तुम्हारे भाई और द्रौपदी अपने कर्मों के परिणामस्वरूप गिरे हैं। वे अपना समय समाप्त कर चुके हैं। अब केवल तुम ही इस यात्रा के योग्य हो। वे अपने कर्तव्यों और कर्मों के अनुसार अपने स्थानों पर जा चुके हैं। तुम्हारे धर्म और सत्य के पालन के कारण तुम्हें स्वर्ग का वरदान प्राप्त है।”इंद्र के इस उत्तर से युधिष्ठिर ने धर्म का एक और गहरा संदेश समझा। उन्होंने यह स्वीकार किया कि हर व्यक्ति अपने कर्मों के आधार पर अपना मार्ग बनाता है। अपने भाइयों और द्रौपदी के लिए दुखी होने के बावजूद, युधिष्ठिर ने धर्म के पथ का पालन किया और इंद्र के रथ में बैठकर स्वर्ग की ओर प्रस्थान किया।
युधिष्ठिर के स्वर्गारोहण को धर्म और सत्य की विजय के रूप में देखा जाता है। उनके जीवन की यह अंतिम घटना यह सिखाती है कि सत्य और धर्म का पालन करने वाले को कभी भी पराजय का सामना नहीं करना पड़ता। यह महाभारत का एक महत्वपूर्ण प्रसंग है, जो यह बताता है कि युधिष्ठिर ने अपने जीवन में हमेशा सत्य और न्याय का पालन किया और अंत में उन्हें देवराज इंद्र के द्वारा स्वयं स्वर्ग ले जाया गया।
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