October 20, 2024
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आखिर क्यों मनाई जाती है छोटी दिवाली-फिर बड़ी दिवाली, जानिए पौराणिक कथाओं में छिपा महत्व

आखिर क्यों मनाई जाती है छोटी दिवाली-फिर बड़ी दिवाली, जानिए पौराणिक कथाओं में छिपा महत्व

  • WRITTEN BY: Shweta Rajput
  • LAST UPDATED : October 20, 2024, 2:52 pm IST
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नई दिल्ली: भारत में दिवाली का त्योहार सबसे महत्वपूर्ण और भव्य त्योहारों में से एक माना जाता है। यह पांच दिनों तक चलने वाला पर्व होता है, जिसमें छोटी दिवाली और बड़ी दिवाली का खास महत्व होता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इन दोनों दिवालियों का पौराणिक महत्व क्या है?

 

छोटी दिवाली: नरकासुर वध की कथा

 

छोटी दिवाली, जिसे ‘नरक चतुर्दशी’ या ‘रूप चौदस’ के नाम से भी जाना जाता है, दिवाली से एक दिन पहले मनाई जाती है। इस दिन की पौराणिक कथा नरकासुर के वध से जुड़ी है। नरकासुर एक अत्याचारी राक्षस था, जिसने स्वर्ग और पृथ्वी पर आतंक मचाया हुआ था। उसने 16,100 कन्याओं को बंदी बना लिया था और उनसे विवाह करने की योजना बनाई थी। भगवान विष्णु ने, कृष्ण के रूप में, नरकासुर का अंत करने का संकल्प लिया। इस युद्ध में भगवान कृष्ण की पत्नी सत्यभामा ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ऐसा माना जाता है कि सत्यभामा के प्रहार से नरकासुर का वध हुआ और कन्याओं को मुक्त किया गया। इसी उपलक्ष्य में छोटी दिवाली मनाई जाती है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।

 

बड़ी दिवाली: भगवान राम की अयोध्या वापसी

 

बड़ी दिवाली, जिसे ‘दीपावली’ के नाम से भी जाना जाता है, भारत का सबसे बड़ा पर्व है। इस दिन को भगवान राम की अयोध्या वापसी के रूप में मनाया जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान राम ने 14 वर्षों का वनवास पूरा किया और रावण का वध कर सीता माता के साथ अयोध्या लौटे थे। उनके स्वागत में अयोध्यावासियों ने पूरे नगर को दीपों से सजा दिया था और इस खुशी में पूरे नगर में उत्सव मनाया गया। इसी दिन को हम दिवाली के रूप में मनाते हैं। यह पर्व अच्छाई पर बुराई, प्रकाश पर अंधकार और सत्य पर असत्य की जीत का प्रतीक है।

 

लक्ष्मी पूजन का महत्व

 

दिवाली के दिन माता लक्ष्मी की पूजा का विशेष महत्व होता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन माता लक्ष्मी पृथ्वी पर आती हैं और जो लोग श्रद्धापूर्वक उनकी पूजा करते हैं, उनके घर में समृद्धि और सुख-शांति का वास होता है। इस दिन व्यापारी वर्ग अपनी नई खाता-बही का आरंभ करते हैं, जिसे ‘मूहर्त पूजन’ कहा जाता है।

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