नई दिल्ली: हिंदू धर्म में कई ऐसी मान्यताएं हैं, जिनका लोग आंख बंद करके आज तक पालन करते आ रहे हैं। ऐसे कई रीति-रिवाज हैं, जिनके बारे में जानकर अक्सर हम हैरान हो जाते हैं। ऐसी ही एक मान्यता किन्नर समाज से भी जुड़ी है। जैसा कि आप जानते हैं कि हिंदू धर्म में हर शुभ काम सुबह सूर्य की किरण के साथ किए जाते हैं और इन शुभ कामों में किन्नरों को जरूर न्योता दिया जाता है।
आपने अक्सर अपने आस-पास देखा होगा कि जब किसी के घर में बच्चे का जन्म होता है तो ढेर सारी बधाइयां दी जाती है साथ ही साथ बच्चे को किन्नरों का आशीर्वाद भी दिलाया जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि किन्नरों की दुआओं में काफी शक्ति होती है। फिर ऐसा क्यों है कि किन्नरों की मृत्यु होने पर उनका अंतिम संस्कार रात के समय किया जाता है? इतना ही नहीं अंतिम संस्कार पर उनके मृत शरीर को जूते चप्पलों से पीटा भी जाता है? आइए जानते हैं इसके पीछे क्या राज छिपा है?
जानकारी के अनुसार अंतिम संस्कार को लेकर किन्नर समाज का कहना है कि उन्हें अपनी मृत्यु का पहले से ही आभास हो जाता है। इस दौरान वह भोजन करना बंद कर देते हैं और बाहर आना-जाने से भी परहेज करते हैं। अपने अंतिम समय में वह पूरी तरह से ईश्वर में विलीन हो जाते हैं और अपने इष्ट देवता से प्रार्थना करते हैं कि-इस जन्म में किन्नर बनकर जो उन्होंने सहा है वह उन्हें अगले जन्म में न सहना पड़े। वह ईश्वर से कहते कि अगले जन्म में हमें किन्नर न बनाए।
किन्नर समाज में मृत शरीर को जलाया नहीं बल्कि दफनाया जाता है। सबसे पहले मृत शरीर पर कफन लपेटा जाता है, लेकिन शरीर को किसी भी चीज से बांधा नहीं जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि उनका मानना होता है कि ऐसे में आत्मा को आजाद होने में कष्ट होता है इसलिए सिर्फ कफ़न लपेटा जाता है। किन्नर समाज में ऐसी मान्यता है कि रात में अंतिम क्रिया इसलिए की जाती है, ताकि इस प्रक्रिया को कोई भी इंसान ना देख पाए। किन्नरों को लगता है कि अगर कोई इंसान किन्नर के शव को देख लेता है तो उसे भी अपना अगला जन्म किन्नर के रूप में ही मिलेगा। इसी कारण से पूरी अंतिम क्रिया को रात में किया जाता है।
किसी किन्नर की मृत्यु के बाद बाकी किन्नर उसके मृत शरीर को जूते चप्पल से पीटते हैं। इसके पीछे भी कई मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। दरअसल किन्नरों का मानना है कि-अगले जन्म में उन्हें इस योनि में जन्म ना मिले इसलिए वह शव को जूते चप्पल से पीटते हैं। इसके अलावा सभी किन्नर अपने इष्ट देवता का भी बहुत ध्यान करते हैं। इसके साथ-साथ वह दान पुण्य भी करते हैं। किन्नर किसी किन्नर की मृत्यु के बाद जश्न भी मनाते हैं और ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि- उन्हें इस योनी से मुक्ति मिले और अगले जन्म में ऐसा नर्क रुपी जीवन ना मिले। इसके साथ ही वह लगभग 1 सप्ताह तक भूखे रहते हैं।
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