वट सावित्री के व्रत में महिलाएं बरगद के पेड़ की पूजा क्यों करती हैं ? जाने !

वट सावित्री नई दिल्ली : वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या के दिन मनाते है. इस साल 30 मई के दिन महिलाएं ये व्रत रखेंगी. ये व्रत महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए करती है. और बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर पूजा करती है। सावित्री ने अपने पति को […]

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वट सावित्री के व्रत में महिलाएं बरगद के पेड़ की पूजा क्यों करती हैं ? जाने !

Jagriti Dubey

  • May 27, 2022 10:16 pm Asia/KolkataIST, Updated 2 years ago

वट सावित्री

नई दिल्ली : वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या के दिन मनाते है. इस साल 30 मई के दिन महिलाएं ये व्रत रखेंगी. ये व्रत महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए करती है. और बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर पूजा करती है।

सावित्री ने अपने पति को जीवित कराया

पति की लंबी आयु और परिवार की सुख समृद्धि के लिए महिलाएं ये व्रत रखती है और इस बार ये त्यौहार 30 मई को है। इस दिन महिलाएं बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर पूजा करती है.

साथ ही अपने पति के जीवन की रक्षा और परिवार में सभी सदस्यों की सुख सुविधाओं की मनोकामना करती है.

जिस तरह सावित्री ने ये व्रत रख कर अपने मृत पति सत्यवान को जीवित ही नहीं कराया बल्कि सास ससुर की खोई हुई यश कीर्ति और राज्य को भी वापस दिलाया था.

वट का अर्थ

वट का अर्थ बरगद. बरगद का पेड़ अपनी विशालता की पहचान है जो संयुक्त परिवार को प्रदर्शित करता है.

इस पेड़ में त्रिदेव यानी जड़ में ब्रह्मा जी, तने में विष्णु जी और सबसे ऊपर शाखाओं और पत्तों में भगवान शंकर का वास होता है,

त्रिदेव के रहने के कारण ही इसे देववृक्ष की संज्ञा दी है. यही कारण है कि सबसे विशाल और छायादार पेड़ों में से एक माना जाता है. ज्येष्ठ मास की कड़ी धूप में महिलाएं कैसे पूजा करेंगी।

यही वजह है जो इस वृक्ष को चुना गया है. वैसे सावित्री के पति ने जिस पेड़ के नीचे प्राण त्यागे थे वो भी वट का वृक्ष था, घना छायादार वृक्ष और ज्येष्ठ मास में जब सूर्यदेव पूरे तेज पर होते हैं, तब इस वृक्ष की छाया के नीचे पूजा करने की विधि है.

वट सावित्री की पूजा विधि

ज्येष्ठ मास की अमावस्या के दिन वट वृक्ष की जड़ में जल चढ़ा कर तने पर रोली का टीका लगाते है, इसके बाद चना, गुड़, घी आदि चढाने के साथ ही देसी घी का दीपक जलाया जाता है.

पूरी श्रद्धा भाव के साथ कच्चे सूत से वृक्ष की पत्तियों की बनी माला पहन कर सावित्री सत्यवान की कथा को सुनना चाहिए.

इसके बाद वट वृक्ष की 108 परिक्रमा करते हुए पति और परिवार के स्वास्थ्य, धन वैभव सुख समृद्धि की प्रार्थना करती है.

वट वृक्ष के मूल को हल्दी से रंगे हुए सूत को लपेटते हुए फिर माता सावित्री का ध्यान करते अर्घ्य देना चाहिए.पूजा के बाद घर आकर अपनी सास, पति व अन्य लोगों के चरण छू कर आशीर्वाद लेते है.

व्रत की कथा

मद्र देश के राजा अश्वपति की कोई संतान नहीं था. जिसके कारण वे बहुत ज्यादा दुखी रहते थे. राजा ने बहुत यज्ञ करवाया जिसके प्रताप से उन्हें पुत्री रत्न प्राप्त हुई.

जैसे-जैसे कन्या बड़ी हुई तो उसने सत्यवान को पति के रूप में वर्णन किया. जब यह बात महर्षि नारद को पता चली

तो उन्होंने राजा अश्वपति को बता दिया कि आपकी बेटी ने जिस युवक को पति के रूप में वर्णन किया है

उसकी आयु कम है. इसी पर सावित्री ने पिता से कहा कि पति का वर्णन तो एक बार ही किया जाता है और वह मैने तो कर लिया है.

सत्यवान के पिता का राजपाठ छीना

इस बीच सत्यवान के पिता राजा घुुमत्सेन का राजपाठ सब छिन लिया गया और वे जंगल में एक पेड़ के नीचे रहने चले गए थे,

साथ ही उनके आँखों की रोशनी भी जाती रही. राजा अश्वपति ने वहीं पहुंच कर बेटी सावित्री का विवाह कर दिया और वहां से लौट आए.

वन में रहते हुए सावित्री सास ससुर और पति की बहुत सेवा किया. एक दिन सत्यवान जंगल में लकड़ियां काट रहे थे कि अचानक उनके सिर में दर्द हुआ और वे नीचे आ गए.

सावित्री ने उनका सिर गोद में रख कर दबाने लगी. तभी वहां यमराज अपने कुछ दूतों के साथ आए और बोले की सत्यवान का अब समय पूरा हो गया है. मैं इन्हें अपने साथ ले के जा रहा हूं.

इस पर सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चलने लगी. यमराज ने सावित्री की पति के प्रति निश्छल प्रेम देख वर मांगने को कहा तो उन्होंने सास ससुर के लिए आँख की रौशनी मांगी.

सावित्री इसके बाद भी रुकी नहीं चलती रही तो यमराज ने दूसरा वर मांगने को कहा, सावित्री ने अपने सास ससुर के राज पाठ को मांगा और फिर लौट जाने को कहा. कुछ देर बाद यमराज ने देखा की सावित्र अभी भी नहीं रुकी चलती आ रही है

तो अंतिम वर मांगने को कहा जिसमें उन्होंने सत्यवान से सौ पुत्र मांगे. अब यमराज प्रसन्न हुए उन्हें यह वरदान देते हुए सत्यवान को छोड़ दिया.

फिर सावित्री लौट कर वापिस जंगल के उसी पेड़ के पास जा पहुंची जहां सत्यवान पड़े थे, सावित्री के आते ही उनके शरीर में जीवन का संचार शुरू हुआ और वे उठ बैठे.

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