Ramayan: रामायण में माता शबरी का प्रसंग है। हमारे घर के बड़े-बुजुर्ग भी हमें शबरी की निश्छल भक्ति के बारे में सुनाते हैं। माता शबरी ने कई वर्षों तक वन में श्री राम की प्रतीक्षा की। जब राम उनकी कुटिया में आये तो उन्होंने प्रभु को जूठे बेर खिलाए। लेकिन क्या आप जानते हैं कि […]
Ramayan: रामायण में माता शबरी का प्रसंग है। हमारे घर के बड़े-बुजुर्ग भी हमें शबरी की निश्छल भक्ति के बारे में सुनाते हैं। माता शबरी ने कई वर्षों तक वन में श्री राम की प्रतीक्षा की। जब राम उनकी कुटिया में आये तो उन्होंने प्रभु को जूठे बेर खिलाए। लेकिन क्या आप जानते हैं कि शबरी कौन थीं? अपनी शादी से एक दिन पहले वो घर छोड़कर भाग गईं थीं। आइये जानते हैं उनकी कहानी…
माता शबरी को राम का परम भक्त कहा जाता है। वास्तव में शबरी का नाम श्रमणा था। शबर जाति से संबंध रखने के कारण कालांतर में इनका नाम शबरी हो गया। इनके पिता भीलों के मुखिया थे। जब उनका विवाह तय हुआ तो 100 पशुओं की बली चढ़ाने की बात कही गई। शबरी यह सुनकर अत्यंत दुखी हो गई। वो अपनी शादी से एक दिन पहले घर छोड़कर भाग गईं। वो जंगल में पहुंची, जहाँ मतंग ऋषि तपस्या करते थे। निम्न जाति से होने के कारण वो उनका सेवा नहीं कर पाती थीं। फिर भी वह सुबह जल्दी उठकर नदी का रास्ता साफ कर देती थीं। कांटे चुनकर रख देती थीं। ऋषि को पता न चले इसलिए वो छुपकर ही सेवा करती रहीं।
एक दिन ऋषियों में उन्हें ये सब करते हुए देख लिया। वो शबरी की सेवा भाव से प्रसन्न हुए और उन्हें अपने आश्रम में रहने की जगह दे दी। जब मतंग ऋषि परम लोक जाने वाले थे तो उन्होंने शबरी से कहा कि तुम इसी आश्रम में रहकर राम की प्रतीक्षा करना वो जरूर आएंगे। इसके बाद से शबरी राम की प्रतीक्षा करने लगी। वो रोज आश्रम को साफ़ करती थीं, वन से मीठे फल तोड़कर लाती थीं। बेर खट्टे न हो इसलिए वो इसलिए वो चख कर देखती थीं। एक दिन राम और लक्ष्मण माता सीता की खोज करते हुए उनके आश्रम तक पहुंचे। प्रभु को देखकर शबरी का जीवन धन्य हो गया। उन्होंने श्री राम के पैर धोए। उन्हें अपना जूठा बेर खिलाया। राम ने भी श्रद्धापूर्वक शबरी के जूठे बेर खाए।
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