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भगवान विष्णु ने भंग कर दिया था वृंदा का सतीत्व, राक्षस पत्नी की श्राप से बन गए पत्थर

Lord Vishnu: श्रीमद देवी भागवत पुराण में तुलसी से जुड़ी हुई एक कथा अत्यंत प्रचलित है। महादेव ने एक बार अपने तेज को समुद्र में फेंक दिया था। इस तेज से एक महातेजस्वी बालक का जन्म हुआ, जिसका नाम जालंधर था। जालंधर आगे चलकर एक पराक्रमी दैत्य राजा बना और अपनी नगरी बसाई। दैत्यराज कालनेमी […]

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तुलसी
  • September 11, 2024 9:05 am Asia/KolkataIST, Updated 3 months ago

Lord Vishnu: श्रीमद देवी भागवत पुराण में तुलसी से जुड़ी हुई एक कथा अत्यंत प्रचलित है। महादेव ने एक बार अपने तेज को समुद्र में फेंक दिया था। इस तेज से एक महातेजस्वी बालक का जन्म हुआ, जिसका नाम जालंधर था। जालंधर आगे चलकर एक पराक्रमी दैत्य राजा बना और अपनी नगरी बसाई। दैत्यराज कालनेमी ने अपनी कन्या वृंदा का विवाह जालंधर से कर दिया।

बैकुंठ पर आक्रमण

वृंदा पतिव्रता स्त्री थीं, उसके तेज से जालंधर को कोई पराजित नहीं कर पाता था। जालंधर माता लक्ष्मी को पाने का सपना देखने लगा। इसके लिए उसने विष्णुलोक पर आक्रमण कर दिया। भगवान को पराजित करके उसने माता लक्ष्मी को उनसे छीनना चाहा। परन्तु देवी ने कहा कि हम दोनों जल से उत्पन्न हुए हैं, ऐसे में भाई बहन हुए। देवी लक्ष्मी की बातों से वह प्रभावित हो गया और बैकुंठ छोड़ दिया।

माता पार्वती से करना चाहा विवाह

जालंधर अब कैलाश पर आक्रमण करना चाह रहा था। उसने देवी पार्वती से विवाह करने की योजना बनाई। महादेव को युद्ध के लिए ललकारा। जालंधर महादेव का ही अंश था लेकिन वृंदा की सतीत्व की वजह से वह बार-बार उसे मारने में असफल हो रहे थे। अंत में सभी देवता विष्णु के पास गए और उन्हें वृंदा के पास जाने को कहा। वृंदा भगवान विष्णु की अनन्य भक्त थीं। विष्णु उनके महल में पहुंच गए।

विष्णु ने खत्म कर दी सतीत्व

वृंदा उस समय जालंधर की जीत हेतु विष्णु की पूजा कर रही थीं। तभी भगवान जालंधर का भेष धारण कर वहां पहुंचे। वृंदा ने विष्णु को अपना पति जालंधर समझा और उनके साथ पति-पत्नी की तरह रहने लगी। इस तरह से वृंदा का सतीत्व भंग हो गया। महादेव ने जालधंर को मार दिया। वृंदा को जब पता चला कि भगवान ने उनके सतीत्व को नष्ट कर दिया है तो उसने आत्मदाह कर लिया। उन्होंने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि वो पत्थर के बन जायेंगे।

भगवान बने पत्थर

वृंदा के भस्म होने पर उस राख की जगह पर तुलसी का पौधा उग गया। भगवान ने उस तुलसी के पौधा को अपना लिया। भगवान ने कहा कि हे वृंदा अपनी सतीत्व की वजह से तुम मेरे लिए प्रिय हो गई हो। अब तुसली रूप में तुम हमेशा मेरे साथ रहोगी। शालिग्राम रूप में पृथ्वी पर मेरा और तुम्हारा विवाह होगा। जो भी शालिग्राम और तुलसी का विवाह करेगा उसे यश की प्राप्ति होगी।

 

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