युद्ध में मरते समय दुर्योधन ने श्रीकृष्ण को क्यों दिखाई थी तीन उंगलियां, जानिए क्या है इसका का रहस्य

नई दिल्ली: महाभारत के महायुद्ध के दौरान दुर्योधन और श्रीकृष्ण के बीच का एक महत्वपूर्ण प्रसंग हमें बहुत कुछ सिखाता है। इस युद्ध के अंत में जब दुर्योधन घायल अवस्था में धराशायी हो गया था, तब उसकी जान धीरे-धीरे निकल रही थी। उस समय श्रीकृष्ण उसके पास आए और उससे बातचीत की। इस दौरान दुर्योधन […]

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युद्ध में मरते समय दुर्योधन ने श्रीकृष्ण को क्यों दिखाई थी तीन उंगलियां, जानिए क्या है इसका का रहस्य

Shweta Rajput

  • October 15, 2024 1:26 pm Asia/KolkataIST, Updated 1 month ago

नई दिल्ली: महाभारत के महायुद्ध के दौरान दुर्योधन और श्रीकृष्ण के बीच का एक महत्वपूर्ण प्रसंग हमें बहुत कुछ सिखाता है। इस युद्ध के अंत में जब दुर्योधन घायल अवस्था में धराशायी हो गया था, तब उसकी जान धीरे-धीरे निकल रही थी। उस समय श्रीकृष्ण उसके पास आए और उससे बातचीत की। इस दौरान दुर्योधन ने तीन उंगलियां उठाकर श्रीकृष्ण को दिखाईं। इस रहस्यमय घटना के पीछे कई गहरे अर्थ छिपे थे।

तीन उंगलियों का रहस्य

1. कृष्ण को अपना मित्र न बनाना: दुर्योधन का पहला पछतावा था कि उसने श्रीकृष्ण को अपना मित्र और मार्गदर्शक नहीं बनाया। वह जानता था कि अगर वह श्रीकृष्ण की सलाह मानता, तो शायद उसकी जीवन दिशा बदल सकती थी। श्रीकृष्ण न केवल पांडवों के सहायक थे, बल्कि एक दार्शनिक और मार्गदर्शक के रूप में भी विख्यात थे।

2. द्रौपदी का अपमान: दुर्योधन का दूसरा पछतावा द्रौपदी के साथ किए गए अपमानजनक व्यवहार से जुड़ा था। जब उसने द्रौपदी का चीरहरण करवाने का प्रयास किया, उसने नारी गरिमा का अपमान किया, और यही घटना महाभारत युद्ध की चिंगारी बनी। उसे अब समझ आया कि द्रौपदी के अपमान ने ही उसके विनाश का मार्ग प्रशस्त किया।

3. भीम से लड़ाई: तीसरा पछतावा उसकी भीम के साथ हुई लड़ाई से था। दुर्योधन ने हमेशा भीम को अपना प्रतिद्वंद्वी माना और अंत में वही भीम उसके पतन का कारण बना। भीम ने गदा युद्ध में उसकी जंघा तोड़ी, जिससे वह मृत्यु के कगार पर पहुंच गया।

श्रीकृष्ण का उत्तर

श्रीकृष्ण ने दुर्योधन की बातों को ध्यान से सुना और उसके पछतावे को समझा। उन्होंने शांतिपूर्ण तरीके से उसे यह बताया कि अब इन पछतावों का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि जो बीत गया, वह वापस नहीं आ सकता। जीवन में सही निर्णय समय पर लेने जरूरी होते हैं। अगर दुर्योधन ने पहले ही इन बातों पर ध्यान दिया होता, तो शायद उसका अंत इस तरह से न होता।

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