नई दिल्ली: जम्मू के कटरा में स्थित माता वैष्णो देवी मंदिर हिंदू धर्म के सबसे पवित्र और प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में से एक है। यह मंदिर माता वैष्णो देवी को समर्पित है, जो देवी दुर्गा का एक रूप मानी जाती हैं। हर साल लाखों श्रद्धालु इस मंदिर में दर्शन करने आते हैं, खासकर नवरात्रि के समय जब भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस मंदिर में स्थित तीन पवित्र पिंडियों का रहस्य क्या है? आइए, जानते हैं इसकी पूरी कहानी।
माता वैष्णो देवी की कथा हंसाली गांव के एक भक्त श्रीधर से जुड़ी है। श्रीधर के कोई संतान नहीं थी, इसलिए वह बहुत दुखी रहते थे। एक दिन उन्हें एक सुझाव मिला कि यदि वे कुछ कुंवारी कन्याओं को भोज के लिए बुलाएंगे, तो उन्हें संतान का आशीर्वाद मिल सकता है। श्रीधर ने यह बात मानकर कई कन्याओं को भोज पर बुलाया, जिनमें माता वैष्णो भी एक थीं।
भोज के दौरान, भैरव नाथ नामक एक तपस्वी ने मांस और मदिरा की मांग की, जो उस समय के रिवाज के अनुसार गलत था। माता वैष्णो ने भैरव नाथ की इस मांग को ठुकरा दिया, जिससे भैरव नाथ क्रोधित हो गए और माता का पीछा करने लगे। माता वैष्णो ने त्रिकूटा पर्वत की ओर उड़ान भरी और एक गुफा में जाकर छिप गईं। हनुमानजी ने उनकी रक्षा की और भैरव नाथ से युद्ध किया। अंत में माता ने महाकाली का रूप धारण कर भैरव नाथ का वध किया।
जिस गुफा में माता ने ध्यान लगाया था, वही स्थान आज माता वैष्णो देवी मंदिर के रूप में प्रसिद्ध है। यहां तीन पवित्र पिंडियाँ हैं, जिन्हें माता का साक्षात रूप माना जाता है। इन तीन पिंडियों के पीछे एक विशेष रहस्य छिपा है:
1. सरस्वती: पहली पिंडी ज्ञान की देवी सरस्वती का प्रतीक है।
2. लक्ष्मी: दूसरी पिंडी धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी का प्रतीक है।
3. काली: तीसरी पिंडी शक्ति और साहस की देवी काली का प्रतीक है।
माना जाता है कि जो भी भक्त सच्चे दिल से इन पिंडियों के दर्शन करता है, उसे ज्ञान, धन, और शक्ति का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
मान्यता है कि माता वैष्णो देवी के दर्शन करने के बाद भैरव नाथ के मंदिर में जाना भी जरूरी है, क्योंकि बिना इसके यात्रा अधूरी मानी जाती है। ऐसा इसलिए क्योंकि भैरव नाथ ने माता से क्षमा मांगी थी और माता ने उन्हें आशीर्वाद दिया था कि जो भी भक्त उनके दर्शन करेगा, उसे भैरव नाथ के दर्शन भी करने होंगे।
माता वैष्णो देवी के मंदिर की तीन पिंडियां केवल पत्थर नहीं, बल्कि शक्ति, समृद्धि और ज्ञान का प्रतीक हैं। भक्त यहां आकर माता से जीवन के इन तीनों पहलुओं का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं, और भक्ति की इस अद्भुत यात्रा को पूरी करते हैं।
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