नई दिल्ली: दुनियाभर की मस्जिदों में गुंबदों की खूबसूरती देखना आम है। यह न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि वास्तुकला का एक अनूठा नमूना भी है। वहीं क्या आपने कभी सोचा है कि मस्जिदों पर गुंबद क्यों और किसने बनाया था हुए इसके पीछे का क्या इतिहास है?
गुंबद का इतिहास प्राचीन सभ्यताओं से जुड़ा हुआ है. बता दें मेसोपोटामिया, रोम और ईरान में गुंबदों का प्रयोग इमारतों को ढकने के लिए किया जाता था। वहीं इस्लामी वास्तुकला में गुंबद ने एक नया आयाम प्राप्त किया, जहां वास्तुकारों ने इसे और भी अधिक आकर्षक और कलात्मक रूप दिया। इस प्रकार गुंबद मस्जिदों का अभिन्न हिस्सा बन गया।
गुंबद बनाने के पीछे कई कारण हैं। सबसे पहले गुंबद को आकाश का प्रतीक माना जाता है, जो ईश्वर की शक्ति और अनंतता को दर्शाता है। इसके अलावा गुंबद एकता और एकजुटता का भी प्रतीक है, जो सभी मुसलमानों को एकजुट करने का संदेश देता है। इतना ही नहीं गुंबद का डिजाइन भी ध्वनि के वितरण में सहायक होता है। जब इमाम कुरान पढ़ते हैं, तो गुंबद उनकी आवाज को पूरी मस्जिद में फैलाने में मदद करता है।
गुंबद का मुख्य उद्देश्य मस्जिद की पहचान और उसकी सुंदरता को बढ़ाना है। गुंबद की ऊंचाई और आकार आसमान की ओर इंगीत करते हैं, जो अल्लाह के साथ आध्यात्मिक संबंध को दर्शाता है। आमतौर पर गुंबद गोलाकार या अंडाकार आकृति में होता है, जो उसकी नींव का समर्थन करता है।
इसके अलावा गुंबद मस्जिद के अंदर प्रकाश और हवा का प्रवेश भी सुनिश्चित करता है। गुंबद के बीच में अक्सर बड़ी खिड़कियां होती हैं, जो प्राकृतिक रोशनी को अंदर लाती हैं। इस प्रकार, गुंबद न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि वास्तुकला का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
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