कौन है वो योद्धा जो रामायण और महाभारत दोनों कालों में मौजूद थे, क्या है उनकी भूमिका

नई दिल्ली: प्राचीन भारतीय इतिहास में दो ऐसे प्रमुख ग्रंथ हैं जिनके बिना भारतीय संस्कृति की कल्पना करना मुश्किल है – रामायण और महाभारत। इन दोनों महाकाव्यों में कई महान योद्धाओं का वर्णन मिलता है, लेकिन एक योद्धा ऐसा था जो दोनों कालों में उपस्थित था – और वह थे भगवान परशुराम। परशुराम की भूमिका […]

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कौन है वो योद्धा जो  रामायण और महाभारत दोनों कालों में मौजूद थे, क्या है उनकी भूमिका

Shweta Rajput

  • September 15, 2024 11:47 am Asia/KolkataIST, Updated 2 months ago

नई दिल्ली: प्राचीन भारतीय इतिहास में दो ऐसे प्रमुख ग्रंथ हैं जिनके बिना भारतीय संस्कृति की कल्पना करना मुश्किल है – रामायण और महाभारत। इन दोनों महाकाव्यों में कई महान योद्धाओं का वर्णन मिलता है, लेकिन एक योद्धा ऐसा था जो दोनों कालों में उपस्थित था – और वह थे भगवान परशुराम।

परशुराम की भूमिका

भगवान परशुराम को विष्णु के छठे अवतार के रूप में जाना जाता है। उनकी पहचान एक अमर योद्धा और गुरु के रूप में की जाती है। कहा जाता है कि उन्होंने 21 बार पृथ्वी से क्षत्रियों का विनाश किया था। परशुराम का जन्म ब्राह्मण परिवार में हुआ था, लेकिन वे क्षत्रिय गुणों से परिपूर्ण थे। उनका जीवन युद्ध और क्षत्रियों को दंडित करने के लिए समर्पित रहा।

रामायण काल में परशुराम

रामायण के काल में भगवान परशुराम का विशेष उल्लेख सीता के स्वंयवर के समय होता है। जब राजा जनक ने सीता के विवाह हेतु धनुष यज्ञ का आयोजन किया, तो उन्होंने घोषणा की कि जो भी योद्धा शिव के विशाल धनुष को उठा और उसे तोड़ पाएगा, वही सीता से विवाह करेगा। कई राजकुमार इस यज्ञ में शामिल हुए, लेकिन कोई भी उस धनुष को हिला तक नहीं सका। अंत में, भगवान राम ने शिव का धनुष उठाया और उसे तोड़ दिया। धनुष टूटने की आवाज से भगवान परशुराम अत्यधिक क्रोधित हो गए और वे सीता स्वंयवर में पहुँचे। उनका मानना था कि कोई भी साधारण मानव इस दिव्य धनुष को नहीं तोड़ सकता, इसलिए उन्होंने राम से युद्ध की चुनौती दी। परंतु, जब परशुराम को यह ज्ञात हुआ कि राम, विष्णु के अवतार हैं, तो उनका क्रोध शांत हो गया और उन्होंने राम को आशीर्वाद दिया।

महाभारत काल में परशुराम

महाभारत में परशुराम की भूमिका एक गुरु के रूप में प्रमुखता से दिखती है। उन्होंने भीष्म पितामह, कर्ण और द्रोणाचार्य जैसे महान योद्धाओं को युद्धकला की शिक्षा दी। कर्ण ने जब द्रोणाचार्य से शिक्षा पाने में असफलता पाई, तो उन्होंने परशुराम की शरण ली। कर्ण ने झूठ बोलकर परशुराम से शिक्षा प्राप्त की, लेकिन जब परशुराम को इसका पता चला, तो उन्होंने कर्ण को श्राप दिया कि अत्यंत महत्वपूर्ण समय पर वह अपनी विद्या भूल जाएगा। यही श्राप महाभारत युद्ध में कर्ण की मृत्यु का कारण बना।

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