नई दिल्लीः भगवान शिव और देवी पार्वती की पुत्री अशोक सुंदरी एक दिव्य युवती थी जो अपनी सुंदरता के लिए जानी जाती थी। अशोक सुंदरी की सुंदरता के कारण देवी पार्वती ने उसे वरदान दिया कि वह भगवान इंद्र के सिंहासन को संभालने वाले व्यक्ति के समान शक्तिशाली युवक से विवाह करेगी। देवी पार्वती और भगवान शिव के आशीर्वाद से नहुष और अशोक सुंदरी का विवाह हुआ। इस विवाह से अशोक सुंदरी को एक वीर पुत्र और सौ सुंदर पुत्रियों का वरदान मिला।
जब इंद्र ने ब्रह्म हत्या के पाप से खुद को छिपाया तो देवताओं ने राजा नहुष को देवराज की गद्दी पर बैठा दिया। इंद्र का पद पाकर नहुष में अहंकार और अधर्म का प्रवेश हो गया। एक दिन उसने इंद्राणी शची पर बुरी नजर डाली और उसे अपने महल में बुला लिया। शची इंद्र के पास गई और अपने पतिव्रत धर्म की रक्षा के लिए मदद मांगी। इंद्र ने शची को सलाह दी कि वह राजा नहुष को संदेश भेजे कि वह सप्त ऋषियों की पालकी पर सवार होकर आएं।
नहुष ने ऋषियों से पालकी उठवाई और शची के पास गए। लेकिन ऋषियों की धीमी गति से क्रोधित होकर नहुष ने ऋषि अगस्त्य को लात मार दी। इस पर ऋषि अगस्त्य ने उसे दस हजार वर्षों तक सर्प के रूप में रहने का श्राप दे दिया। इस प्रकार भगवान शिव और माता पार्वती की पुत्री अशोक सुंदरी की कथा न केवल उनके विवाह की घटनाओं को दर्शाती है, बल्कि राजा नहुष के अहंकार और श्राप की कथा भी एक महत्वपूर्ण शिक्षा की कथा है।
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