नई दिल्ली: उत्पन्ना एकादशी हिंदू धर्म में अत्यधिक पवित्र और फलदायी व्रत माना जाता है। यह व्रत मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है। इस एकादशी का संबंध भगवान विष्णु से है और इसे उनके भक्तों द्वारा विशेष श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। आइए जानते हैं इस वर्ष उत्पन्ना एकादशी की सही तारीख, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और इस व्रत का महत्व।
मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है। इस बार उत्पन्ना एकादशी की तिथि 25 नवंबर को मध्य रात्रि के बाद 1 बजकर 1 मिनट से शुरू होगी, यानी तब तक 26 नवंबर की तिथि लग चुकी होगी। 27 नवंबर की सुबह 3 बजकर 47 मिनट पर इस तिथि का समापन होगा। यानी कि उदया तिथि के मुताबिक 26 नवंबर को उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखा जाएगा।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, उत्पन्ना एकादशी व्रत के पालन से समस्त पापों का नाश होता है और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस व्रत के पीछे कथा है कि यह एकादशी माता एकादशी के जन्म का प्रतीक है, जो भगवान विष्णु की शक्ति से असुर मुर को हराने के लिए प्रकट हुई थीं। इस व्रत को करने से मनुष्य को सभी सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है और भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
1. व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
2. भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर के सामने दीपक जलाएं और चंदन, फूल, धूप, और तुलसी पत्र अर्पित करें।
3. विष्णु सहस्रनाम और एकादशी व्रत कथा का पाठ करें।
4. दिनभर निराहार या फलाहार व्रत रखें और भगवान विष्णु का स्मरण करें।
5. रात्रि में जागरण करें और भजन-कीर्तन में भाग लें।
6. अगले दिन द्वादशी तिथि पर ब्राह्मणों को भोजन कराकर व्रत का पारण करें।
पौराणिक कथा के अनुसार, जब असुर मुर ने स्वर्ग लोक और देवताओं पर अत्याचार करना शुरू किया, तो भगवान विष्णु ने उससे युद्ध किया। युद्ध के दौरान भगवान विष्णु की शक्ति से एक कन्या प्रकट हुई, जिसने मुरासुर का वध कर दिया। यह कन्या “एकादशी माता” के नाम से जानी गई और तब से इस दिन को “उत्पन्ना एकादशी” के रूप में मनाया जाता है।
– व्यक्ति के समस्त पापों का नाश होता है।
– मन और शरीर शुद्ध होते हैं।
– यह व्रत भौतिक सुखों के साथ-साथ आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करता है।
– भगवान विष्णु के आशीर्वाद से जीवन में शांति और समृद्धि आती है।
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