नई दिल्ली: हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का बहुत महत्त्व है। हर महीने की त्रयोदशी तिथि को आने वाला प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित होता है। कार्तिक माह का अंतिम प्रदोष व्रत बहुत खास माना जाता है, क्योंकि यह भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने और मनोकामना पूर्ति का शुभ अवसर होता है। इस […]
नई दिल्ली: हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का बहुत महत्त्व है। हर महीने की त्रयोदशी तिथि को आने वाला प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित होता है। कार्तिक माह का अंतिम प्रदोष व्रत बहुत खास माना जाता है, क्योंकि यह भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने और मनोकामना पूर्ति का शुभ अवसर होता है। इस व्रत को करने से भक्तों को सुख-समृद्धि, स्वास्थ्य और शांति का आशीर्वाद मिलता है। आइए जानते हैं इस व्रत की शुभ तिथि, मुहूर्त और पूजा विधि।
हिंदू पंचांग के अनुसार, 13 नवंबर दोपहर 01 बजकर 01 मिनट पर कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी की शुरुआत होगी। 14 नवंबर सुबह 09 बजकर 43 मिनट पर इस तिथि का समापन होगा। ऐसे में प्रदोष व्रत बुधवार 13 नवंबर को रखा जाएगा। इस दिन का पूजा मुहूर्त शाम 05 बजकर 49 मिनट से रात 08 बजकर 25 मिनट तक रहेगा।
1. स्नान और संकल्प: सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें और व्रत का संकल्प लें। भगवान शिव के प्रति अपनी भक्ति को समर्पित करें।
2. मंदिर में पूजा की तैयारी: शाम को सूर्यास्त के बाद मंदिर में दीपक जलाएं। शिवलिंग को जल, दूध, दही, घी, शहद, और गंगाजल से स्नान कराएं।
3. भगवान शिव का श्रृंगार: शिवलिंग पर चंदन, अक्षत, और पुष्प अर्पित करें। धूप और दीप जलाएं। बेलपत्र, भांग, धतूरा, और सफेद पुष्प विशेष रूप से अर्पित करें।
4. मंत्र जाप: “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करें और भगवान शिव से सुख-समृद्धि और शांति की कामना करें।
5. आरती और प्रसाद वितरण: पूजा के अंत में शिव आरती करें और प्रसाद बांटें। संभव हो तो शिवपुराण का पाठ करें।
प्रदोष व्रत का विशेष लाभ उन लोगों को मिलता है जो परिवार में सुख-शांति, सेहत, और धन-धान्य में वृद्धि चाहते हैं। इस व्रत को करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और अपनी कृपा से भक्तों के जीवन की सभी कठिनाइयों को दूर करते हैं। इस व्रत से पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है।
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