नई दिल्ली: मणिकर्णिका स्नान एक विशेष धार्मिक परंपरा है, जो हिंदू संस्कृति और पौराणिक कथाओं में अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस स्नान का आयोजन उत्तर प्रदेश के वाराणसी में स्थित पवित्र मणिकर्णिका घाट पर होता है। इसे मोक्ष प्राप्ति का मार्ग कहा जाता है, और इसे करना पुण्यदायक माना जाता है। सभी घाटों में […]
नई दिल्ली: मणिकर्णिका स्नान एक विशेष धार्मिक परंपरा है, जो हिंदू संस्कृति और पौराणिक कथाओं में अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस स्नान का आयोजन उत्तर प्रदेश के वाराणसी में स्थित पवित्र मणिकर्णिका घाट पर होता है। इसे मोक्ष प्राप्ति का मार्ग कहा जाता है, और इसे करना पुण्यदायक माना जाता है। सभी घाटों में काशी का मणिकर्णिका घाट सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मणिकर्णिका घाट पर स्नान करने से मोक्ष मिलता है। वहीं, मणिकर्णिका घाट पर वैकुंठ चतुर्दशी के दिन स्नान करने से भगवान भोलेनाथ और भगवान विष्णु दोनों भगवानों की आशीर्वाद मिलता है।
मणिकर्णिका स्नान इस वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि यानी 15 नवंबर 2024 को किया जाएगा। मणिकर्णिका स्नान को वैकुंठ चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है। कार्तिक मास में भगवान विष्णु की पूजा करने का में विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है और उनको समर्पित मणिकर्णिका स्नान, वैकुंठ चतुर्दशी के दिन रात्रि के तीसरे पहर में करके पुण्यफल प्राप्त किया जाता है।
मणिकर्णिका घाट वाराणसी के सबसे प्राचीन घाटों में से एक है और इसे पवित्र माना जाता है। इस स्थान का महत्व है कि यह घाट मृतकों का अंतिम संस्कार करने का एक प्रमुख स्थल है। यहां पर मान्यता है कि जो व्यक्ति यहां स्नान करता है, उसे अपने पिछले जन्मों के पापों से मुक्ति मिलती है। यहां स्नान करने का उद्देश्य सिर्फ पवित्रता प्राप्त करना ही नहीं बल्कि आत्मा की शुद्धि भी है। इस घाच को मोक्षदायिनी घाट भी कहा जाता है। वाराणसी को “मोक्ष नगरी” कहा जाता है और मणिकर्णिका घाट को मोक्ष का प्रवेश द्वार माना गया है। इसी कारण, हर साल हजारों भक्त इस शुभ तिथि पर मणिकर्णिका घाट पर स्नान के लिए एकत्रित होते हैं। धार्मिक मान्यता है कि यहां पर किए गए स्नान से भगवान शिव और मां पार्वती की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
मणिकर्णिका घाट का इतिहास बहुत प्राचीन है। इस घाट पर भोलेनाथ और मां दुर्गा का एक मंदिर भी है। मणिकर्णिका घाट का निर्माण मगध के राजा द्वारा किया गया था। मणिकर्णिका घाट पर लगभग 300 से अधिक शवों को प्रतिदिन जलाया जाता है। ऐसा इस घाट पर 3000 वर्षों से भी अधिक पहले से होता आ रहा है। इस स्थान पर अंतिम संस्कार का कार्य डोम समुदाय के लोगों द्वारा किया जाता है।
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