नई दिल्ली: कालाष्टमी का पर्व भगवान काल भैरव को समर्पित है। यह हर महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। इसे कालभैरव अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान शिव के रौद्र रूप की पूजा की जाती है, जिसे काल भैरव कहते हैं। मान्यता है कि कालाष्टमी […]
नई दिल्ली: कालाष्टमी का पर्व भगवान काल भैरव को समर्पित है। यह हर महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। इसे कालभैरव अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान शिव के रौद्र रूप की पूजा की जाती है, जिसे काल भैरव कहते हैं। मान्यता है कि कालाष्टमी पर की गई पूजा और व्रत से सभी कष्टों का नाश होता है और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
– तिथि प्रारंभ: 22 नवंबर 2024 को रात 06:07 बजे
– तिथि समाप्त: 23 नवंबर 2024 को रात 07:56 बजे
– इस बार कालाष्टमी का पर्व और भैरव जयंती 22 नवंबर को मनाई जाएगी।
1. स्नान और संकल्प: प्रातः स्नान करके साफ कपड़े पहनें। व्रत का संकल्प लें और भगवान शिव एवं काल भैरव का ध्यान करें।
2. भगवान की स्थापना: पूजन स्थल को साफ करके भगवान शिव और काल भैरव की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
3. पूजा सामग्री: दीपक, अगरबत्ती, लाल पुष्प, चंदन, भस्म, गुड़, काले तिल और नारियल चढ़ाएं।
4. मंत्र जाप: भगवान भैरव के मंत्र “ॐ कालभैरवाय नमः” का जाप करें। इससे नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और सुख-शांति आती है।
5. भोग और आरती: भगवान को भोग लगाकर आरती करें। रात्रि में विशेष रूप से काल भैरव का ध्यान करें।
कालाष्टमी के दिन भगवान काल भैरव की आराधना करने से भक्तों को उनके जीवन में आने वाली समस्याओं से छुटकारा मिलता है। यह दिन बुरी शक्तियों और नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, काल भैरव भगवान शिव का उग्र रूप हैं, जो अधर्म और अन्याय का नाश करते हैं। मान्यता है कि इस दिन पूजा करने से व्यक्ति को कालदोष, पितृदोष और शनि दोष से मुक्ति मिलती है।
1. मन की शांति और आत्मविश्वास बढ़ता है।
2. आर्थिक संकट और शत्रुओं से रक्षा होती है।
3. पितरों की कृपा प्राप्त होती है।
4. स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से छुटकारा मिलता है।
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