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कब है जया एकादशी, जानें क्यों है इस दिन का इतना महत्व, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

हिंदू धर्म में जया एकादशी का विशेष महत्व है। जया एकादशी व्रत के पालन से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और जीवन के कष्टों से मुक्ति मिलती है। इस व्रत को श्रद्धा और नियमपूर्वक करने से मोक्ष की प्राप्ति संभव है। आइए जानते हैं इस दिन का महत्व, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि?

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Jaya Ekadashi
  • January 30, 2025 10:45 am Asia/KolkataIST, Updated 3 weeks ago

नई दिल्ली: हिंदू धर्म में जया एकादशी का विशेष महत्व है। जया एकादशी व्रत के पालन से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और जीवन के कष्टों से मुक्ति मिलती है। इस व्रत को श्रद्धा और नियमपूर्वक करने से मोक्ष की प्राप्ति संभव है। आइए जानते हैं इस दिन का महत्व, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि?

जया एकादशी का महत्व

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जया एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति भूत, प्रेत, पिशाच जैसी नीच योनियों से मुक्ति पाता है और मोक्ष की प्राप्ति करता है। पौराणिक कथा के अनुसार, स्वर्ग में गंधर्व माल्यवान और अप्सरा पुष्पवती ने इंद्र के श्राप के कारण पिशाच योनि में जन्म लिया। माघ शुक्ल एकादशी के दिन अनजाने में व्रत और जागरण करने से उन्हें पिशाच योनि से मुक्ति मिली और वे पुनः स्वर्ग लौट आए। इसलिए, जया एकादशी व्रत को अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है।

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सही तिथि और शुभ मुहूर्त

हिंदू वैदिक पंचांग के अनुसार, शुक्रवार, 7 फरवरी को रात 9 बजकर 26 मिनट पर माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की होगी और शनिवार, 8 फरवरी को रात 8 बजकर 15 मिनट पर इस तिथि का समापन होगा। उदया तिथि के अनुसार इस बार 8 फरवरी को जया एकादशी का व्रत रखा जाएगा। पंचांग के अनुसार, एकदाशी व्रत का पारण अगले दिन यानी द्वादशी तिथि का किया जाता है। रविवार 9 फरवरी को जया एकादशी व्रत का पारण होगा। जया एकादशी के पारण के शुभ मुहूर्त की शुरुआत सुबह 7 बजकर 4 मिनट से लेकर 9 बजकर 17 मिनट तक रहेगा। इस दौरान व्रत का पारण किया जा सकता है।

जया एकादशी की पूजा विधि

1. व्रत के एक दिन पूर्व (दशमी तिथि) से ही सात्विक भोजन ग्रहण करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें।

2. जया एकादशी के दिन प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

3. घर के पूजा स्थल में भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।

4. भगवान विष्णु को पीला चंदन, अक्षत, पुष्प, माला, फल, पंचामृत, और तुलसी दल अर्पित करें।

5. घी का दीपक और धूप जलाकर विष्णु सहस्रनाम, नारायण स्तोत्र, या विष्णु चालीसा का पाठ करें।

6. रात्रि में जागरण करते हुए भगवान का स्मरण करें।

7. द्वादशी तिथि (अगले दिन) पर ब्राह्मणों या जरूरतमंदों को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा देकर व्रत का पारण करें।

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