नई दिल्ली : आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में प्रतिपदा से अमावस्या तक 15 दिनों के लिए पूरा पखवाड़ा पितृपक्ष होता है. इस साल यह 11 सितंबर से लेकर 25 सितंबर तक पड़ने जा रहा है. ये समय अपने पितरों को तृप्त करने का होता है. इस समय कोई भी लौकिक शुभ कार्य का प्रारंभ करना शुभ नहीं माना जाता है. इसके साथ किसी नए कार्य या नए अनुबंध को भी नहीं करना चाहिए. आइए बताते हैं कि इन 15 दिनों के भीतर क्या नहीं करना चाहिए.
साल के 365 दिनों में से केवल 15 दिन ही अपने पितरों को समर्पित करने होते हैं. जिस तरह सावन के महीने के रूप में महादेव को एक पूरा माह समर्पित रहता है और मां शक्ति के लिए वर्ष में दो बार 9 दिन शारदीय नवरात्रि और चैत्र नवरात्र आती हैं. ठीक उसी प्रकार शास्त्रों में पितरों के लिए भी पूरे एक पक्ष का समय दिया गया है. इससे यह स्पष्ट ही है कि पितर हमारे लिए कितने महत्वपूर्ण होते हैं.
ईश्वर तो एक होता है, लेकिन पितर कई सारे होते हैं. इसका संबंध हमारी परंपरा से है. इसलिए ये जानना जरूरी है कि आखिर यह पितर हैं कौन? पितर हमारे जीवन में अदृश्य सहायक हैं. यह हमारे जीवन के कार्यों, लक्ष्यों आदि में पूरा शुभ व अशुभ प्रभाव रखते हैं. यानी अगर पितर प्रसन्न हैं तो आपका हर काम सरल और आसानी से हो जाएगा. उनका अदृश्य सपोर्ट आपको मिलता रहेगा, जिस तरह साइकिल चलाते समय यदि उसी दिशा में तेज हवा चलने लगे तो पैडल करना आसान हो जाता है.
पितर अपना पिछला शरीर त्याग चुके हैं, लेकिन अभी अगला शरीर प्राप्त नहीं किया है. हिंदू धर्म की मान्यता है कि जीवात्मा स्थूल शरीर छोड़ देती है, उस समय ही इंसान की मृत्यु होती है. आपको 15 दिनों के लिए गृह कलह यानी घर में लड़ाई झगड़ा नहीं करना चाहिए.
शराब, बैंगन, मांसाहार, मछली अंडा आदि का सेवन नहीं करना चाहिए.
इस दौरान आपको किसी भी तरह का मांगलिक या शुभ कार्य नहीं करना चाहिए.
नास्तिक होते हुए भी आपको धर्म गुरुओं और साधुओं का अपमान नहीं करना चाहिए.
इन 15 दिनों के दौरान किसी भी अतिथि का अपमान ना करें.
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