Ramayan: त्रेता युग में सुलोचना पतिव्रता स्त्रियों में गिनी जाती थीं। वो वासुकी नाग की पुत्री और मेघनाद की पत्नी थी। सुलोचना के बारे में वाल्मीकि रामायण और तुलसीकृत रामायण में कम उल्लेख मिलता है लेकिन तमिल भाषा की कथाओं में उसके बारे में प्रमुखता से उल्लेख किया गया है। आइये जानते हैं कि मेघनाद की मृत्यु के बाद सुलोचना का क्या हुआ था?
जब लक्ष्मण ने मेघनाद का वध कर दिया तो उसकी भुजा सुलोचना के पास जाकर गिरी। सुलोचना ने जब भुजा देखी तो उसे विश्वास नहीं हुआ। उसने अपने पतिव्रता धर्म का वास्ता देकर भुजा से युद्ध के बारे में लिखने को कहा। इतना सुनते ही मेघनाद ने अपनी कटी हुई भुजा से युद्ध में घटित सारी कहानी सुलोचना को लिखकर बता दी। इसके बाद सुलोचना रावण के पास पहुंची और सती होने की इच्छा जाहिर की। सुलोचना ने रावण से कहा कि उसे अपने पति का कटा हुआ सिर चाहिए क्योंकि उसके बिना वह सती नहीं हो सकती।
रावण अपने बेटे के सिर के लिए शत्रु के सामने याचना करना नहीं चाहता था। उसने सुलोचना को स्वयं श्रीराम के पास जाकर मेघनाथ का मस्तिष्क लेकर आने को कहा। लंकापति की आज्ञा से सुलोचना श्रीराम की कुटिया में पहुंची। सुलोचना ने राम से अपने पति का मस्तिष्क मांगा। श्रीराम ने वानर राज सुग्रीव को मेघनाथ का सिर लेकर आने को कहा। लेकिन सभी के मन में आशंका हुई कि सुलोचना को सारा वृतांत कैसे पता है? तब जाकर सुलोचना ने मेघनाद की भुजा द्वारा लिखी गई युद्ध वृतांत के बारे में बताया।
वानर राजा सुग्रीव सुलोचना की बातें सुनकर आश्चर्यचकित थे। उन्होंने कहा कि अगर तुम्हारे पतिव्रत धर्म में इतनी शक्ति है तो यह कटा हुआ सिर हंसकर दिखाए। सुलोचना ने मेघनाद के मस्तिष्क को अपने पतिव्रत धर्म का हवाला देकर सबके सामने हंसने के लिए कहा। फिर क्या था मेघनाद का कटा हुआ सिर सबके सामने जोर-जोर से हंसने लगा। सब यह देखकर हतप्रभ थे परंतु श्रीराम तो सुलोचना की शक्ति से परिचित थे। राम के आदेश पर मेघनाद का सिर सुलोचना को दे दिया गया और वह सती हो गई। श्री राम ने अगले दिन युद्ध विराम की घोषणा कर दी ताकि लंकावासी अपने युवराज की मृत्यु का शोक मना सके।
माता सीता को क्यों नहीं छू पाया लंकापति रावण?