नई दिल्ली. वट सावित्री व्रत का हिंदू धर्म में काफी महत्व माना जाता है. इस दिन सुहागन महिलाएं अपने सुहाग की रक्षा के लिए वट वृक्ष और यमदेव की पूजा करती हैं. शाम के समय वट की पूजा करने पर ही व्रत को पूरा माना जाता है. इस दिन सावित्री व्रत और सत्यवान की कथा सुनने का विधान है. शास्त्रों के अनुसार इस कथा को सुनने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है. कथा के अनुसार सावित्री यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस ले आई थी. इस व्रत में कुछ महिलाएं फलाहार का सेवन करती हैं तो वहीं कुछ निर्जल उपवास भी रखती हैं.
वट वृक्ष का महत्व: Vat Savitri Vrat Significance
हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत में ‘वट’ और ‘सावित्री’ दोनों का बहुत ही महत्व माना जाता है. पीपल की तरह वट या बरगद के पेड़ का भी विशेष महत्व होते हैं. शास्त्रों के अनुसार वट में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास होता है. बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा सुनने से मनोवांछित फल की प्राप्ती होती है. वट वृक्ष अपनी लंबी आयु के लिए भी जाना जाता है. इसलिए यह वृक्ष अक्षयवट के नाम से भी मशहूर है.
वट सावित्री व्रत की तिथि और शुभ मुहूर्त: Vat Savitri Vrat Puja Subh Muhurat
ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावास्या को वट सावित्री अमावास्या कहा जाता है. अमावास्या तिथि 02 जून 2019 को शाम 04 बजकर 39 मिनट से शुरू होगी और 03 जून 2019 को दोपहर 03 बजकर 31 मिनट तक
वट सावित्री व्रत के लिए पूजन सामग्री और पूजन विधि: Vat Savitri Vrat Puja Samagri
वट सावित्री पूजन के लिए सत्यवान-सावित्री की मूर्ती, बांस का बना हुआ एक पंखा, लाल धागा, धूप, मिट्टी का दीपक, घी, 5 तरह के फल फूल. 1.25 कपड़ा, दो सिंदूर जल से भरा हुआ पात्र और रोली इकट्ठा कर लें.
वट सावित्री व्रत की पूजन विधि: Vat Savitri Vrat Puja Vidhi
इस दिन सुहागनों को सुबह स्नान करके सोलह श्रंगार करके तैयार हो जाना चाहिए. वट सावित्री में वट यानि बरगद के पेड़ का बहुत महत्व माना जाता है. शाम के समय सुहागनों को बरगद के पेड़ के नीचे पूजा करनी होती है. एक टोकरी में पूजा की सभी सामग्री रखें और पेड़ की जड़ो में जल चढ़ाएं. जल चढ़ाने के बाद दीपक जलाएं और प्रसाद चढ़ाएं. इसके बाद पंखे से बरगद के पेड़ की हवा करें और सावित्री मां का आशिर्वाद लें. वट वृक्ष के चारों ओर कच्चे धागे या मोली को 7 बार बांधते हुए पति की लंबी उम्र और स्वास्थय की कामना करें. इसके बाद मां सावित्री-सत्यवान की कथा सुनें. घर जाकर उसी पंखें से अपने पति को हवा करें और आशिर्वाद लें. फिर प्रसाद में चढ़े फल आदि ग्रहण करने के बाद शाम में मीठा भोजन अवश्य करें.
वट सावित्री व्रत की कथा: Vat Savitri Vrat Katha
भद्र देश के राजा अश्वपति के कोई संतान नहीं थी. उन्होंने संतान की प्राप्ति के लिए कई वर्षों तक तपस्या कि जिससे प्रसन्न होकर देवी सावित्री ने प्रकट होकर पुत्री का वरदान दे दिया. फलस्वरूप राजा को कन्या हुई और इसी वजह से कन्या का नाम सावित्री रखा गया. कन्या काफी सुंदर और गुणवान थी. सवित्री के लिए योग्य वर नहीं मिल पा रहा था जिसके लिए राजा दुखी थे. इस कारण राजा कि पुत्री खुद ही वर तलाशने तपोवन में भटकने लगी. वहां सावित्री ने राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को देखा और उन्हें पति के रूप में मानकर उनका वरण किया. सत्यवान अल्पआयु और वे वेद ज्ञाता भी थे. नारद मुनि ने सावित्री से मिलकर सत्यवान से विवाह करने के लिए समझाया. लेकिन सावित्री ने नारद मुनि की बात नहीं सुनी और सत्यवान से ही शादी कर ली. जब सत्यवान की मृत्यु में जब कुछ ही दिन बचे थे तब सावित्री ने घोर तपस्या की जिसके बाद यमराज ने सावित्री के तप से प्रसन्न हो गए और उन्हें वरदान मांगने के लिए कहा. वरदान में सावित्री ने अपने पति के प्राण मांग लिए.
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