नई दिल्ली. वट सावित्री का व्रत हिंदू धर्म में कई मायनों में खास होता है. इसे सौभाग्य, संतान और पति की लंबी आयु की कामना के लिए किया जाता है. इस व्रत वाले दिन सुहागन महिलाएं 16 श्रृंगार कर बरगद के पेड़ के चारों ओर फेरें लगाकर अपने पति की लंबी आयु की प्रार्थना करती हैं. इस दिन वट यानि बरगद के पेड़ की पूजा करने का प्रधान है. इस व्रत को वट सावित्री के नाम से इसीलिए पुकारा जाता है क्योंकि सावित्री-सत्यवान की कथा का विधान है. सावित्री का अर्थ वेद माता गायत्री और सरस्वती भी होता है. वट सावित्री व्रत की तिथि की बात करें तो ये व्रत हर वर्ष ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को मनाया जाता है. इस साल 2018 में Vat Savitri vrat 2018, 15 मई 2018 को है.
वट सावित्री व्रत कथा 2018( Vat Savitri Vrat Katha in Hindi ):
प्रचलित कथाओं के अनुसार भद्र देश के राजा अश्वपति के कोई संतान नहीं थी. जिन्हें कई पूजा, यज्ञ के बाद सावित्रीदेवी की कृपा से एक तेजस्वी कन्या का जन्म हुआ. सावित्री देवी की देन थी इसीलिए इस कन्या का नाम सावित्री रखा गया. जैसे जैसे सावित्री बड़ी हुई उसके रूप और लावण्य को देखकर कोई भी मोहित हो जाता. एक दिन राजा ने बेटी से पूछा, बेटी अब तुम विवाह के योग्य हो गई हो इसलिए स्वयं अपने योग्य वर की खोज करो. जिसके बाद सावित्री ने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए अपने मंत्रियों के साथ यात्रा पर निकल गई. प्रदेश में भ्रमण करने के बाद जब सावित्री घर लौटी तो राजा ने पूछा. पिता के पूछने पर बेटी सावित्री ने बताया किपोवन में अपने माता-पिता के साथ निवास कर रहे द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान सर्वथा मेरे योग्य हैं.
सावित्री की बात सुन कर नारद हैरान रह गए और कहने लगे की सत्यवान शुत्रओं के द्वारा राज्य से वंचित कर दिए गए हैं . सत्यवान के माता-पिता दृष्टि खो चुके हैं और वन में अपना शेष जीवन काट रहे हैं . नारद जी ने बताया कि सत्यवान का सिर्फ एक साल का जीवन शेष रह गया है. सावित्री से बड़ी भूल हो गई है. वहीं सावित्री ने कहा कि मैं उन्हें मन से उन्हें ही पति के रूप में स्वीकार कर चुकी हूं. बेटी की बात सुन राजा अश्वपति ने बेटी सावित्री का विवाह सत्यवान से करवा दिया. धीरे-धीरे वह समय भी आ पहुंचा जिसमें सत्यवान की मृत्यु निश्चित थी. एक दिन दोनों जंगल में लकड़ी लेने गए थे वहीं सत्यवान के सिर में जोरों का दर्द हुआ जिसके बाद वह पत्नी की गोद में लेट गया. वहीं सावित्री को लाल कपड़ों में भयंकर दिखने वाला पुरुष आता दिखाई दे रहा था.
वह कोई ओर नहीं बल्कि स्वयं यमराज थे. यमराज को देख सावित्री समझ गई कि वह उसके पति को लेने आए हैं. यमराज सत्यवान को यमलोक ले जाने लगते हैं वहीं सावित्री भी यमराज के पीछे पीछे जाती है. सावित्री को यमराज कहते हैं कि हे पतिव्रता नारी, पृथ्वी तक ही तेरा और पति का साथ था अब सिर्फ यमलोक में पति ही जाएगा तू नहीं. पतिव्रता नारी कहने लगी कि जहां मेरे पति जाएंगे वहीं मैं भी रहूंगी.
सावित्री की निष्ठा देख यमराज ने कहा तुम अपने पति के बदले 3 वरदान मांग लो. जिसके बाद सावित्री ने पहले वरदान के रूप में अपने सांस-ससुर की आंखे मांगी. यमराज ने इस वरदान के लिए सावित्री को तथास्तु कहा. वहीं दूसरे वरदान में सावित्री ने अपने पिता के लिए 100 पुत्रों का वरदान मांगा जिसे सुनकर यमराज ने तथास्तु कहा. तीसरे और आखिरी वरदान में यमराज से सावित्री ने तेजस्वी पुत्र की मांग की. यमराज ने इस पर भी सावित्री को तथास्तु कह कर चलने लगे. लेकिन थोड़ी देर में यमराज उलझन में पड़ गए कि बिना पति के पुत्र कैसे संभव है. बाध्य होकर यमराज को सत्यवान को पुनर्जीवित करना पड़ा. ये वही दिन था जब सावित्री यमराज के मुंह से पति के जीव छीन लाई.
Vat Savitri vrat 2018 Shubh Muhurat
अमावस्या तिथि आरंभ: 14 मई 2018 सोमवार 19:46
अमावस्या तिथि समापन: 15 मई 2018 बुधवार 17:17
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