Tulsi Vivah 2022: नई दिल्ली। आज देशभर में तुलसी विवाह मनाया जा रहा है। तुलसी विवाह का आयोजन हर साल कार्तिक शुक्ल द्वादशी को किया जाता है। इससे एक दिन पहले देवउठनी एकादशी को भगवान विष्णु चार महीने की योग निद्रा के बाद बाहर आते हैं और चातुर्मास खत्म हो जाता है। इसके बाद मांगलिक […]
नई दिल्ली। आज देशभर में तुलसी विवाह मनाया जा रहा है। तुलसी विवाह का आयोजन हर साल कार्तिक शुक्ल द्वादशी को किया जाता है। इससे एक दिन पहले देवउठनी एकादशी को भगवान विष्णु चार महीने की योग निद्रा के बाद बाहर आते हैं और चातुर्मास खत्म हो जाता है। इसके बाद मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं।
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार जालंधर नाम का एक राक्षस देवी-देवताओं को आतंकित कर रखा था। बताया जाता है कि जालंधर की पत्नी वृंदा एक पतिव्रता नारी थी। उसकी पूजा से जालंधर को किसी भी युद्ध में पराजय हासिल नहीं होती थी। इसके साथ ही वृंदा भगवान विष्णु की भी परम भक्त थी। ऐसे में विष्णु भगवान की कृपा की वजह से भी उसे युद्ध में हमेशा विजय हासिल होती थी।
जालंधर ने एक दिन स्वर्ग लोक पर आक्रमाण कर दिया। जिसके बाद सभी देवी-देवता भगवान विष्णु के पास मदद मांगने गए और उनसे अपनी रक्षा की गुहार लगाई। भगवान विष्णु इस बात को जानते थे कि वृंदा की भक्ति को भंग किए बगैर जालंधर को हराना मुमकिन नहीं है। ऐसे में उन्होंने जालंधर का रूप धारण कर लिया, जिसके बाद वृंदा का पतिव्रता धर्म टूट गया।
इससे जालंधर की सारी शक्तियां भी खत्म हो गई। इसके बाद जालंधर युद्ध में मारा गया। जब वृदा को जालंधर की मृत्यु की सूचना मिली तो वह बहुत निराश हो गई। इसके बाद वृंदा को जब उसके साथ हुए छल का पता चला तो उसने क्रोधित होकर भगवान विष्णु को श्राप दे दिया।
वृंदा का पतिव्रता व्रत भंग होने की वजह से उसने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि जिस तरह आपने छल से मुझे वियोग का कष्ट दिया है, उसी तरह आपकी भी पत्नी का कोई छल से हरण करेगा। इसके साथ ही आप पत्थर बन जाएंगे और उस पत्थर को लोग शालीग्राम के रूप में जानेंगे।
कहा जाता है कि वृंदा के श्राप के कारण ही भगवान विष्णु ने दशरथ के पुत्र श्रीराम के रूप में जन्म लिया और फिर सीता हरण के वियोग का कष्ट झेला। वहीं, वृंदा पति के वियोग को सहन नहीं कर पाई और सती हो गई। बताया जाता है कि वृंदा की राख से जो पौधा उत्पन्न हुआ भगवान विष्णु ने उसे तुलसी का नाम दिया और यह प्रण लिया कि वह तुसली के बिना भोग ग्रहण नहीं करेंगे। साथ ही उनका विवाह शालीग्राम से होगा। मान्यता है कि जो भी श्रद्धापूर्वक तुलसी विवाह संपन्न कराएगा, उसका वैवाहिक जीवन हमेशा खुशियों से भरा रहेगा।
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