Tulsi Vivah 2018: ये है तुलसी विवाह की कथा, जानिए क्या है देवउठनी एकादशी की तिथि व महत्व

Tulsi Vivah 2018: तुलसी विवाह कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है. तुलसी विवाह तिथि की बात करें तो यह इस बार 19 नवंबर को पड़ रही है. जानिए क्या है देव प्रबोधनी एकादशी तिथि या तुलसी विवाह का महत्व, तुलसी विवाह की पूरी कथा, तुलसी विवाह पूजा मुहूर्त.

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Tulsi Vivah 2018: ये है तुलसी विवाह की कथा, जानिए क्या है देवउठनी एकादशी की तिथि व महत्व

Aanchal Pandey

  • November 14, 2018 11:28 pm Asia/KolkataIST, Updated 6 years ago

नई दिल्ली. तुलसी विवाह कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है. तुलसी विवाह 2018 इस बार 19 नवंबर को पड़ रही है. हर देवउठनी एकादशी को तुलसी विवाह होता है. इस दिन भगवान विष्णु के स्वरूम शालीग्राम की पूजा की जाती है. इस दिन महिलाएं व्रत करती हैं और तुलसी का विवाह परपंरा पूर्वक करते हैं. कहा जाता है कि इस दिन चार महीने की नींद के बाद विष्णु भगवान उठते हैं और इस दिन से शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं.

Tulsi Vivah Vrat katha: तुलसी विवाह कथा
तुलसी विवाह को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं. कहा जाता है कि राक्षस कुल में एक कन्या का जन्म हुआ जिसका नाम वृंदा था. यह कन्या बचपन से ही भगवान विष्णु की भक्त थीं. जब यह कन्या बड़ी हुई तो कन्या का विवाह समुद्र मंथन से जन्में जलंधर नाम के राक्षस के साथ करवाया गया. पत्नी के भक्ति के कारण राक्षस जलंधर और भी शक्तिशाली हो गया जिसके बाद वह राक्षस सभी पर अत्याचार करने लगा.

जलंधर जब भी किसी युद्ध में जाता तो वृंदा पूजा पाठ करने बैठ जाती जिससे उसके पति का कोई बाल भी बांका नहीं कर पाता. इस कारण युद्ध में जलंधर को पराजय नहीं मिलती. सभी देवी देवता भी इस बात से हैरान थे जिसके बाद सभी देवतका भगवान विष्णु की शरण में आए और मदद की गुहार लगाई.भगवान विष्णु ने वृंदा के साथ छल किया और जलंधर का झूठा रूप धारण कर वृंदा की पतिव्रत धर्म को नष्ट किया.

वहीं जलंधर की शक्ति कम हुई और युद्ध में वह मारा गया. लेकिन यहां वृंदा ने भगवान विष्णु को किए छल के लिए शाप दिया और जिससे वह पत्थर बन गए. पूरे विष्णुलोक में हाहाकार मच गया. जिसके बाद लक्ष्मी जी की प्रार्थना के बाद वृंदा ने अपना शाप वापस लिया. साथ ही खुद को जलंधर की सती कर दिया और खुद को भस्म कर लिया. इस राख पर जो पौधा उगा उसे भगवान विष्णु ने तुलसी का नाम दिया. साथ ही कहा कि जब भी मैं पूजा जाउंगा तो तुलसी अवश्य पूजी जाएगी. साथ ही उस पत्थर को शालिग्राम के नाम से जाना जाएगा जिसके साथ तुलसी का विवाह करवाया जाता है.

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