Mahabharat: महाभारत में द्रौपदी का किरदार बेहद मजबूत महिला का है। द्रौपदी आम भारतीय बहुओं की तरह मर्यादा में रहने वाली स्त्री हैं। वो पतिव्रता हैं और सच्चे मन से अपने धर्म का निर्वहन कर रही हैं। हालांकि चीर हरण के बाद उनके किरदार में बड़ा बदलाव देखने को मिलता है। द्रौपदी द्वारा लिए गए कई ऐसे बोल्ड निर्णय हैं, जिससे आज की हिंदू लड़कियां बहुत कुछ सीख सकती हैं।
- भारत में आज भी महिलाएं मासिक धर्म के बारे में खुलकर बात नहीं करती हैं। खासकर पुरुषों के सामने मासिक धर्म से जुड़ी बातें अक्सर महिलाएं नहीं करती हैं लेकिन द्वापर युग में द्रौपदी ने चीर हरण के दौरान भरी सभा में खुद के रजस्वला होने की बात कही। जब दुशासन द्रौपदी के बालों को खींचते हुए सभा में ले जा रहा था तो उन्होंने दुशासन से कहा कि वो अभी रजस्वला है। बिना ऋतु स्नान किए हुए वो राजसभा में बड़े-बुजुर्गों के बीच नहीं जाएंगी।
- एक बार जब पांडव चौसर खेल रहे थे तो द्रौपदी ने शर्म लिहाज छोड़कर चौसर खेलने का निर्णय लिया। उन दिनों सभा में जाकर महिलाएं चौसर नहीं खेलती थी लेकिन द्रौपदी ने इस प्रथा का भी अंत कर दिया।
- दुशासन ने जब सभा में द्रौपदी के चीर हरण करने का प्रयास किया तो उन्होंने इसे खुला छोड़ दिया। साथ ही बिना डर से उन्होंने सबके सामने कहा कि अब उनके बाल तब तक खुले रहेंगे जब तक वो दुशासन की छाती से उसे धुल नहीं लेती।
- पांडवों के अज्ञातवास के दौरान द्रौपदी राजा विराट की पत्नी की दासी सैरेन्द्री बनकर रही थीं। राजा विराट के साले कीचक ने जब द्रौपदी को देखा तो वो कामांध में अँधा हो गया और उसे अपने कक्ष में बुलाया। द्रौपदी ने हिम्मत दिखाते हुए भीम और अर्जुन को सारी जानकरी दी। इस तरह से कीचक का वध कराया।
- महाभारत युद्ध के दौरान जब भीम ने दुशासन का वध कर दिया तो उन्होंने उसकी छाती का लहू लाकर द्रौपदी को दिया। पांचाली ने शर्म-लिहाज छोड़कर जीत मनाते हुए दुशासन के लहू से अपने बालों का श्रृंगार किया।
द्रौपदी चीरहरण के दौरान स्त्री सम्मान के लिए खड़ा हुआ था यह कौरव, भरी सभा में लगाई थी दहाड़