भगवान शिव पर मोहित हो गई थी ये नदी, माता पार्वती ने दिया मैली और काली होने का श्राप, कथा सुनकर रह जाएंगे हैरान

हिंदू धर्म की कथाओं और पुराणों में गंगा नदी को पवित्रता और शुद्धता का प्रतीक माना गया है। लेकिन एक कथा के अनुसार, माता पार्वती हिमालय की पुत्री हैं और कहा जाता है कि गंगा का अवतरण भी हिमालय से हुआ है, फिर ऐसा क्या हुआ कि माता पार्वती ने गंगा को मैली और काली होने का श्राप दिया था।

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भगवान शिव पर मोहित हो गई थी ये नदी, माता पार्वती ने दिया मैली और काली होने का श्राप, कथा सुनकर रह जाएंगे हैरान

Shweta Rajput

  • November 27, 2024 12:08 pm Asia/KolkataIST, Updated 2 hours ago

नई दिल्ली: हिंदू धर्म की कथाओं और पुराणों में गंगा नदी को पवित्रता और शुद्धता का प्रतीक माना गया है। लेकिन एक कथा के अनुसार, माता पार्वती हिमालय की पुत्री हैं और कहा जाता है कि गंगा का अवतरण भी हिमालय से हुआ है, फिर ऐसा क्या हुआ कि माता पार्वती ने गंगा को मैली और काली होने का श्राप दिया था।

गंगा ने दिया विवाह का प्रस्ताव

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, गंगा नदी को देवताओं और ऋषियों द्वारा बहुत ही पवित्र माना गया था। जब गंगा को भगवान शिव के तप और दिव्य स्वरूप का पता चला, तो वह उनके प्रति आकर्षित हो गईं। गंगा ने भगवान शिव को अपने जीवनसाथी के रूप में पाने का विचार किया। भगवान शिव और माता पार्वती कैलाश पर्वत पर ध्यान और तप में लीन थे, उसी समय गंगा वहां आ पहुंची और भगवान शिव के रूप को देखकर उन पर मोहित हो गई, परंतु, माता पार्वती को गंगा की भावनाओं का आभास नहीं था।

माता पार्वती का क्रोध

जब भगवान शिव ने नेत्र खोले तो उनके सामने देवी गंगा हाथ जोड़े खड़ी थी। गंगा ने शिव जी से कहा कि आपका रूप देखकर मैं मोहित हो गई हूं मुझे अपनी पत्नी स्वीकार करें। माता पार्वती के कानों में जब यह शब्द पड़े तो उन्होंने आंखे खोली और क्रोधित होकर गंगा से कहा कि बहन होकर तुम ये कैसी बातें कर रही हो। माता पार्वती, जो स्वयं भगवान शिव की अर्धांगिनी थीं, गंगा की इस भावना से क्रोधित हो गईं। उन्होंने गंगा को श्राप दिया कि अब गंगा में मृत देह बहेंगे और मनुष्यों के पाप धोते—धोते तुम खुद “मैली और काली” हो जाओगी। इस श्राप का अर्थ था कि गंगा का जल, जो अब तक पवित्र और निर्मल था, आने वाले समय में दूषित हो सकता है।

गंगा का प्रायश्चित

श्राप सुनने के बाद गंगा ने माता पार्वती और भगवान शिव से क्षमा याचना की। उन्होंने अपनी भूल स्वीकार की और शिव जी के चरणों में समर्पित होकर अपनी भक्ति प्रकट की। उनकी तपस्या और प्रायश्चित से प्रसन्न होकर भगवान शिव और माता पार्वती ने गंगा को आशीर्वाद दिया। इसके बाद, गंगा ने मानवता की सेवा के लिए पृथ्वी पर अवतरित होने का संकल्प लिया। भगवान शिव ने गंगा का पश्चाताप देखते हुए कहा उन्हें श्राप मुक्त कर दिया और कहा कि जो भी तुम्हारे जल से स्नान करेगा उसके पाप धुल जाएंगे। गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए राजा भागीरथ ने तपस्या की थी। उनका उद्देश्य था अपने पूर्वजों को मोक्ष प्रदान करना। भगवान शिव ने गंगा को अपने जटाओं में धारण कर पृथ्वी पर नियंत्रित रूप से प्रवाहित होने का अवसर दिया।

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