नई दिल्ली: वाल्मीकि जयंती, जो महर्षि वाल्मीकि के जन्मदिवस के रूप में मनाई जाती है, इस वर्ष 2024 में 17 अक्टूबर मनाई जी रही है और यह हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखती है। महर्षि वाल्मीकि, जिन्हें संस्कृत महाकाव्य रामायण के रचयिता के रूप में जाना जाता है, उनका योगदान भारतीय संस्कृति और साहित्य में अद्वितीय है। उनकी स्मृति में देशभर में कई मंदिर और स्थान स्थापित हैं, लेकिन एक बेहद खास और प्राचीन मंदिर चेन्नई के तिरुवन्मियोर में स्थित है, जिसे करीब 1300 साल पुराना बताया जाता है।
चेन्नई के तिरुवन्मियोर इलाके में स्थित यह वाल्मीकि मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर के रूप में भी विशेष स्थान रखता है। इस मंदिर की स्थापना को लेकर स्थानीय कथाएं और इतिहास जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि यह मंदिर दक्षिण भारत में उन कुछ स्थानों में से एक है, जो महर्षि वाल्मीकि को समर्पित है।
1300 साल पुराना यह मंदिर वास्तुकला और शिल्पकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। इसके निर्माण से जुड़ी कहानियों के अनुसार, इसे चोल वंश के शासनकाल में बनवाया गया था, जो दक्षिण भारत के महान शासक थे। मंदिर का शांत और दिव्य वातावरण आज भी श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है।
वाल्मीकि मंदिर हर साल वाल्मीकि जयंती पर खास कार्यक्रमों का आयोजन करता है, जहां हजारों श्रद्धालु महर्षि वाल्मीकि की पूजा करने और आशीर्वाद प्राप्त करने आते हैं। इस मंदिर में महर्षि वाल्मीकि की प्रतिमा को बहुत आदर के साथ सजाया जाता है, और विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं। इस दिन भक्तजन रामायण का पाठ करते हैं और महर्षि वाल्मीकि के जीवन और शिक्षाओं को याद करते हैं।
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ऐसा माना जाता है कि महर्षि वाल्मीकि ने तिरुवन्मियोर में कुछ समय बिताया था, और यही कारण है कि यहां उनका एक मंदिर स्थापित किया गया। यह स्थान उनके ध्यान और साधना के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर के आसपास का क्षेत्र भी बहुत शांतिपूर्ण है, जहां पर्यटक और भक्त ध्यान करने और मानसिक शांति प्राप्त करने आते हैं।
वाल्मीकि जयंती के दिन मंदिर में विशेष आयोजन होते हैं, जिसमें धार्मिक प्रवचन, भजन-कीर्तन, और रामायण के प्रसंगों का मंचन किया जाता है। यह मंदिर दक्षिण भारत में महर्षि वाल्मीकि के प्रति श्रद्धा और सम्मान का प्रतीक है। भगवान शिव से भी इस मंदिर को जोड़ा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इसी जगह पर रामायण की वाल्मीकि ने रचना करने के बाद भगवान शिव की उपासना की थी।
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