Navratri 2018: नवरात्र में मां दुर्गा के पूजा की विधि, कलश स्थापना और हवन का मुहूर्त

चैत्र नवरात्रि २०१८ में १८ मार्च से शुरू हो रही हैं एवं अष्टमी /नवमी २५ को ही मनायी जाएगी. नवमी के व्रत का पारण २६ मार्च को होगा. नवरात्रि में माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है.

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Navratri 2018: नवरात्र में मां दुर्गा के पूजा की विधि, कलश स्थापना और हवन का मुहूर्त

Aanchal Pandey

  • March 16, 2018 9:14 pm Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago

नई दिल्ली. हिन्दू कैलेंडर के हिसाब से पूरे वर्ष में चार नवरात्रियाँ आती हैं. इनमें से प्रमुख चैत्र नवरात्रि एवं अश्विन मास में मनायी जाने वाली शारदीय नवरात्रि हैं . बाक़ी दोनो नवरात्रियां गुप्त नवरतरियाँ होती हैं जो माघ मास में एवं आषाड़ मास के शुक्ल पक्ष में मनायी जाती हैं.
चैत्र नवरात्रि २०१८ में १८ मार्च से शुरू हो रही हैं एवं अष्टमी /नवमी २५ को ही मनायी जाएगी. नवमी के व्रत का पारण २६ मार्च को होगा.
नवरात्रि में माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है. ऐसा माना जाता है की म दुर्गा की नौ शक्तियों का अवतरण संसार में राक्षसिय एवं बुरी शक्तियों का विनाशकरने के लिए हुआ. इन दिनों में ब्रह्मण्डिय ऊर्जा का प्रवाह अधिक रहता है एवं जो साधक सच्चे मन से देवी माँ की उपासना करता है उसे निर्वाण की प्राप्ति होती है. भक्त जन माता के नौ स्वरूपों का पूजन व्रत उपवास रख कर भजन कीर्तन में मन लगा कर एवं हवन आदि के द्वारा करते हैं.

चैत्र नवरात्रि से हिन्दू नव वर्ष की भी शुरुआत होती है एवं इस वर्ष विक्रम संवत्सर २०७५, विरोधकृत नामक संवत्सर होगा. नवरात्रि के प्रथम दिन घट स्थापना का विशेष विधान है. माना जाता है की जो साधक माता की उपासना करते हैं उन्हें घट स्थापन अवश्य करना चाहिए. घट स्थापनशुभ मुहूर्त में किया जाना चाहिए जब प्रतिपदा तिथि चल रही हो . इस वर्ष १७ मार्च की संध्या १८:४१ से प्रतिपदा तिथि की शुरुआत हो रही है जो १८ मार्च संध्या को१८:३१ तक रहेगी. इसलिए १८ मार्च से ही नवरात्रि की शुरुआत मानी जाएगी.

घट स्थापन का मुहूर्त :

द्विस्वभाव मीन लग्न में प्रातः 6: ३१ से लेकर ७:४६ बजे तक रहेगा .
इसके बाद अभिजीत मुहूर्त में भी घट स्थापन कर सकते हैं जो की १२:०५ से लेकर १२:५३ तक रहेगा .

घट स्थापना की विधि :

घट स्थापना करने के लिए विशेष मुहूर्त को देखा जाता है . घट स्थापना से पहले घर के उत्तर पूर्व हिस्से में एक शुद्ध स्थान का चयन करें . उसे गंगाजल एवं हल्दी केचींटों से शुद्ध करें . फिर एक चौकी लें एवं उसमें बालू एवं मिट्टी से उसे पात दें. उसमें जौं को बोएँ , जों के बीज छिड़क कर हल्के हाथ से पानी के छींटे दें ताकि मिट्टी मेंथोड़ी नमी आ जाए . फिर उसके मध्य में एक पीतल या काँसे या ताम्बे का कलश स्थापित करें . कलश के नीचे चावल एवं हल्दी की एक ढेरी अवश्य रखें . कलश कोजल से भर कर उसके अंदर हल्दी की गाँठ , सिक्का , सुपारी , गोमती चक्र , दूर्वा रखें . उसके मुख पर आम की पत्तियों के पाँच पल्लव रखें एवं फिर उस पर एकनारियल रखें . कलश के गले में मौलि बाँधें . एवं ध्यान रहे की बारियल का मुख आपकी तरफ़ हो . कलश में समस्त देवी देवताओं का वास माना जाता है विशेषकरब्रह्मा , विष्णु एवं महेश तीनों ही कलश में विराजमान होते हैं .

माँ दुर्गा के पूजन का विधान :

कलश के समीप माँ दुर्गा की मूर्ति एक बजोट में लाल कपड़े के ऊपर स्थापित करें . उनके समक्ष नव गृह एवं षोडष मातृकायें चावल की छोटी छोटी ढेरियो के रूप में बनाएं. माँ का शृंगार करें एवं वस्त्र आभूषण से उन्हें सजायें .

फल -फूल , नैवैध्य ,धूप दीप आदि षोडशोपचार से गणेश जी का फिर शिव शक्ति का एवं समस्त देवी देवताओं का आवहन करें . कलश में वरुण आदि देवताओं को आ कर विराजमान होने के लिए आहावन करें . अखंड दीप को पूजा स्थान के अग्निकों दिशा में प्रज्वलित करें . ध्यान रहे की जबआप पूजन कर रहे हों तो आपका मुख पूर्व दिशा की तरफ़ हो .

देवी माँ का ध्यान कर दुर्गा सप्तशती का पाठ करना अत्यंत शुभ होता है . दुर्गा सप्तशती के तेरह अध्याओं का रोज़ पाठ करीं , अगर यह सम्भव नहीं है तो कवच कीलअर्गला का पाठ करें . अगर यह भी सम्भव नहीं है तो देवी के बत्तीस नामवाली का पाठ करना शुभ होता है. देवी माँ के नवार्ण मंत्र का जप करना भी अत्यंत शुभ होता है. उनका नवार्ण मंत्र है: “ॐ ऐँ ह्रीं क्लीं चामुण्डाए नमः”

उपरोक्त मंत्र का १०८ बार जाप अवश्य करें. ऐसा करने से देवी म प्रसन्न होती हैं, आपके चारों तरफ़ सकरात्मक शक्तियों का प्रवाह तेज़ी से होना शुरू हो जाता है एवंसमस्त मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं. नवरात्रि का हर दिन देवी के एक एक स्वरूप को अर्पित है एवं उस दिन उनके उसी अवतार का पूजन किया जाता है. उस दिन माँ के उस अवतार का पूजन , उनका मंत्रएवं उन्हें मनपसंद नैवैद्य अवश्य चड़ाना चाहिए.

घट स्थापन प्रतिपदा की १६ घड़ी के पश्चात नहीं किया जाता एवं दोपहर के बाद या फिर रात्रि को भी घट स्थापन करना वर्जित है. घट स्थापन को चित्रा नक्षत्र एवंवैधृत योग पर करना भी वर्जित है.

देवी माँ के नौ रूपों का पूजन किस दिन करें और क्या भोग लगाएँ :
18 मार्च 2018 (रविवार); प्रतिपदा तिथि : घट स्थापन एवं मां शैलपुत्री का पूजन करें . माँ को घी का भोग अर्पित करें .
19 मार्च 2018 (सोमवार); द्वितीया तिथि : मां ब्रह्मचारिणी का पूजन करें. माँ को शक्कर का भोग लगाएँ .
20 मार्च 2018 (मंगलवार) ; तृतीया तिथि : मां चन्द्रघंटा की पूजा करें . माँ को दूध से बनी वस्तु , खीर आदि भोग में अर्पित करें .
21 मार्च, 2018 (बुधवार), चतुर्थी तिथि : मां कूष्मांडा की पूजा करें. माँ को मालपुए का भोग लगाएँ .
22 मार्च 2018; (गुरुवार) पंचमी तिथि: मां स्कंदमाता का पूजन करे. माँ को केले का भोग लगाएँ .
23 मार्च 2018 (शुक्रवार); षष्ठी तिथि : मां कात्यायनी का पूजन करें. माँ को शहद का भोग लगायें .
24 मार्च 2018 (शनिवार); सप्तमी तिथि : मां कालरात्रि का पूजन करें . माँ को गुड़ का भोग लगाएँ .
25 मार्च 2018 (रविवार); अष्टमी / नवमी तिथि: मां महागौरी एवं मां सिद्धिदात्री का पूजन, संधि पूजन . माँ महागौरी को नारियल का भोग लगाएँ , माँ सिद्धिदात्रि को तिल का भोग लगाएं.
26 मार्च 2018 (सोमवार): दशमी तिथि, नवरात्रि पारण, राम नवमी.

अगर आप अष्टमी को हवन करते हैं तो आपको २४ मार्च को हवन करना चाहिए एवं अगर आप नवमी को हवन करते हैं तो आपको २५ मार्च को हवन करना चाहिए. नवमी का हवन दिन में किया जाता है.

संधि पूजन का समय २५ मार्च प्रातः ७:३८ से ८:२६ तक रहेगा. संधि पूजन उस समय किया जाता है जब अष्टमी तिथि समाप्त हो रही हो एवं नवमी तिथि की शुरुआत हो. इस वक़्त देवी चामुण्डा का विशेषकर पूजन किया जाता है. ऐसा माना जाता है की माँ के देवी चामुण्डा स्वरूप का उद्ग़म चंड – मुण्ड राक्षसों के वध के लिए हुआ था. इस समय हवन करने से , साधक को बल की प्राप्ति होती है एवं जीवन की बड़ी से बड़ी प्रतिकूल परिस्थितियाँ भी अनुकूल हो जाती हैं.)

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