नई दिल्ली: इस साल दशहरा हिन्दू पंचांग के अनुसार 12 अक्टूबर मनाया जाएगा, जिसे असत्य पर सत्य की विजय के प्रतीक के रूप में जाना जाता है। इसी दिन भगवान राम ने रावण का वध किया था और देवी दुर्गा ने महिषासुर पर विजय प्राप्त की थी। वहीं रावण, जिसे दस सिरों वाला दशानन कहा जाता है, का पुतला हर साल इस पर्व पर जलाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि रावण को दस सिर कैसे प्राप्त हुए और उनके प्रतीक क्या हैं?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, रावण भगवान शिव का परम भक्त था। रावण ने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की थी। वहीं हजारों वर्षों तक तपस्या करने के बाद भी जब भगवान शिव प्रकट नहीं हुए, तो निराश रावण ने अपने सिर भगवान शिव को अर्पित करने का निर्णय लिया। एक-एक करके उसने अपने सिर अर्पित करना शुरू किया, लेकिन हर बार एक नया सिर आ जाता। इस तरह रावण ने 9 बार अपना सिर अर्पित किया। जब उसने दसवीं बार अपना सिर चढ़ाने का प्रयास किया, तो भगवान शिव प्रसन्न होकर प्रकट हो गए और रावण को आशीर्वाद दिया। इसी वजह से रावण को दशानन यानी दस सिरों वाला कहा गया। इस घटना के कारण रावण को भगवान शिव का अनन्य भक्त माना जाता है।
रावण के दस सिर प्रतीकात्मक रूप से दस बुराइयों का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये बुराइयां हैं – काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, वासना, भ्रष्टाचार, अनैतिकता और अहंकार है। इन नकारात्मक भावनाओं के कारण रावण, जो ज्ञान और शक्ति से संपन्न था, उसका भी विनाश हो गया। वहीं विजयादशमी पर रावण का पुतला जलाना इन बुराइयों को समाप्त करने का प्रतीक माना जाता है।
बता दें कुछ धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, रावण के दस सिर वास्तविक नहीं थे, बल्कि यह एक भ्रम था। कहा जाता है कि रावण के गले में 9 मणियों की एक माला थी, जो उनके दस सिरों का भ्रम पैदा करती थी। यह माला उनकी मां कैकसी ने उन्हें दी थी। इस प्रकार रावण के दस सिर का रहस्य उसके बुराइयों के प्रतीकात्मक महत्व से जुड़ा है।
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