नई दिल्लीः हमारे पुराणों में कई ऐसी घटनाएं हैं जिनके बारे में आज भी लोगों को नहीं पता। ऐसा कहा गया है कि देवताओं की रक्षा के लिए सात समुद्र पी जाने वाले भगवान शिव भक्त ऋषि अगस्त्य ने अपनी ही पुत्री से विवाह किया था। आइए जानते हैं इसके पीछे की कहानी।
एक दिन ऋषि अगस्त्य ने अपनी तपस्या से सर्वगुण संपन्न एक नवजात कन्या की रचना की। इस कन्या का नाम लोपामुद्रा रखा गया। लेकिन जब उन्हें पता चला कि विदर्भ के राजा संतान प्राप्ति के लिए तपस्या कर रहे हैं तो उन्होंने अपनी पुत्री को उन्हें दे दिया। जब ऋषि अगस्त्य को पता चला कि विवाह न करने के कारण उनके पूर्वजों को मुक्ति नही मिली है तो उन्होंने विवाह करके संतान पैदा करने का निर्णय लिया।
जब उनकी पुत्री बड़ी हुई तो ऋषि अगस्त्य ने राजा से उसका विवाह करने के लिए कहा और राजा इस विवाह से इंकार नहीं कर सकते थे। क्योंकि राजा जानते थे कि अगर उन्होंने ऐसा करने से इंकार किया तो ऋषि अगस्त्य उन्हें अपने खतरनाक श्राप से जलाकर भस्म कर देंगे। इसलिए राजा ने ऋषि अगस्त्य को मना नहीं किया। ऋषि अगस्त्य ने अपनी पत्नी लोपामुद्रा (जो उनकी पुत्री भी थी) की पूर्ण सहमति से विवाह किया और दो संतानों को जन्म दिया। एक संतान का नाम भृंगी ऋषि था जो शिव के बहुत बड़े भक्त थे और दूसरे का नाम अच्युत था।
ऋषि अगस्त्य राजा दशरथ के राजगुरु थे। उन्होंने अपनी तपस्या के दौरान कई मंत्रों की शक्ति देखी थी। उनकी गिनती सप्तऋषियों में होती है। महर्षि अगस्त्य को मंत्र दृष्टा ऋषि कहा जाता है, क्योंकि ऋग्वेद के कई मंत्र उनके दिए गए हैं। जब देवासुर संग्राम चल रहा था, तब सभी राक्षस हारकर समुद्र तल में जाकर छिप गए थे। तब भगवान शिव के आदेश पर अगस्त्य ऋषि ने सातों समुद्रों का पानी पी लिया, जिसके बाद सभी राक्षसों का नाश हो गया।
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