नई दिल्ली : हर वर्ष नवरात्रि के पांचवे दिन स्कंदमाता के पूजन का विधान होता है। हिन्दू पंचाग के अनुसार यह दिन चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन पड़ता है जो की इस वर्ष 26 मार्च को है। भारत में ऐसा मानना है कि स्कंदमाता कार्तिकेय की माता है, ये देवी […]
नई दिल्ली : हर वर्ष नवरात्रि के पांचवे दिन स्कंदमाता के पूजन का विधान होता है। हिन्दू पंचाग के अनुसार यह दिन चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन पड़ता है जो की इस वर्ष 26 मार्च को है। भारत में ऐसा मानना है कि स्कंदमाता कार्तिकेय की माता है, ये देवी पार्वती का ही एक रूप है।शास्त्रों में देवी के स्वरुप का वर्णन माता की गोद में हमेशा स्कन्द देव अर्थात कार्तिकेय के बालस्वरूप को विराजमान हुए बताया गया है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक देवी स्कंदमाता की आराधना से निःसंतान दम्पत्ति को संतान का लाभ मिल सकता है।
देवी माँ के साथ-साथ आज के दिन भगवान कार्तिकेय की भी पूजा का विधान है। पूजा के लिए भक्तों को ब्रह्म मुहूर्त यानी के सूर्योदय से पूर्व ही उठकर स्नान कर साफ़ वस्त्र धारण करना होता है। पूजा का आरम्भ भगवान श्री गणेश की उपासना से होती है तत्पश्च्यात मां दुर्गा का ध्यान करते हुए स्कंदमाता को गंगाजल अर्पित किया जाता है। इसके बाद दीप,धूप, पुष्प इत्यादि से देवी के पूजन क्रिया को आगे बढ़ाया जाता है।
ऐसा कहा जाता है कि पूजा में केले का भोग लगाकर यदि ब्राह्मणों प्रसाद स्वरुप बता जाए तो इससे मानवों के बुद्धि का विकास होता है।
लोगों की मान्यता है कि देवी की आराधना करने से स्वयं ही भगवान कार्तिकेय की भी पूजा हो जाती है एवं माताओं की सुनी गोद भर जाती है। संतान सम्बन्धी कष्टों के निवारण के लिए स्कंदमाता को पीले फूल व पिलीं चीज़ों का भोग लगाया जाता है। साथ बच्चों को फल-मिठाई भी बांटना चाहिए। देवी के उपासकों का मानना है कि स्कंदमाता की पूजा से संतान सुख एवं सभी प्रकार के रोगों का हरण होता है।