नई दिल्ली : इस साल शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 15 अक्टूबर से हो चुकी है. नवरात्रि के नौ दिन माँ दुर्गा के नौ रूपों की उपासना की जाती है. जैसा की हम सभी जानते हैं नवरात्रि के अंतिम दो दिन अष्टमी और नवमीं बेहद खास माने जाते हैं, जिनमे अष्टमी के दिन माता महागौरी का पूजन और नवमी को माता सिद्धिदात्रि का पूजन किया जाता है. नवरात्रि की शुरुआत घट स्थापना के समय घट स्थापना करते हैं और समापन यानि अष्टमी और नवमी पर कन्या पूजन से करते हैं.
अष्टमी कब है
नवरात्रि की अष्टमी को दुर्गा अष्टमी भी कहते हैं. 21 अक्टूबर शनिवार को रात्रि 9 बजकर 53 मिनट पर शुरू होगी और अष्टमी तिथि का समापन 22 अक्टूबर को रात्रि 7 बजकर 58 मिनट पर होगा। लेकिन उदय तिथि होने के कारण अष्टमी 22 अक्टूबर , रविवार के दिन ही मनाई जाएगी।
अष्टमी पर कन्या पूजन
बता दें 22 अक्टूबर के दिन कन्या पूजन के कई मुहूर्त बन रहे हैं जिनमें एक सुबह 7 बजकर 51 मिनट से सुबह 9 बजकर 16 मिनट तक. फिर उसके बाद सुबह 9 बजकर 16 मिनट से 10 बजकर 41 मिनट तक, आप दोनों मुहूर्त में कन्या पूजन कर सकते हैं. 22 अक्टूबर को सर्वार्थ सिद्धि योग बनने से सुबह 6 बजकर 26 मिनट से लेकर शाम 6 बजकर 44 मिनट तक तक आप कभी भी कन्या पूजन कर सकते हैं.
महानवमी कब है
महानवमी के दिन भी कुछ लोग कन्या पूजन करते हैं. इस बार नवमी तिथि 23 अक्टूबर सोमवार के दिन है, इसे महानवमी भी कहा जाता है. इस नवमी तिथि 22 अक्टूबर की शाम 7 बजकर 58 मिनट पर शुरू होगी और नवमी तिथि का समापन 23 अक्टूबर की शाम 5 बजकर 44 मिनट पर होगा।
महानवमी पर कन्या पूजन
महानवमी, 23 अक्टूबर के दिन कन्या पूजन का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 27 मिनट से सुबह 7 बजकर 51 मिनट तक रहेगा. इसके पश्चात् सुबह 9 बजकर 16 मिनट से लेकर सुबह 10 बजकर 41 मिनट तक रहेगा.इस दिन पूजन के लिए अन्य मुहूर्त दोपहर 1 बजकर 30 मिनट से लेकर दोप. 2 बजकर 55 मिनट तक है और उसके बाद 2 बजकर 55 मिनट से दोप. 4 बजकर 19 मिनट तक है.
इन समय के बीच में आप कभी भी कन्या पूजन कर सकते हैं.
कन्या पूजन कैसे करें
धार्मिक विधि शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि की अष्टमी और नवमी तिथि को कन्याओं को निमंत्रण दें. जब कन्याएं घर आए तो पुरे परिवार के साथ पुष्प वर्षा कर नव दुर्गा के सभी रूपों के नामों का जयकारा करें। अब इन सभी कन्याओं को स्वच्छ जगह पर बिठाएं, सभी कन्याओं के पैर को दूध से भरे थाल में अपने हाथों से धोएं। कन्याओं के माथे पर कुमकुम लगाएं, फिर माँ भगवती का ध्यान करके इन कन्याओं को भोजन कराएं, भोजन के बाद अपनी श्रद्धानुसार दक्षिणा या उपहार दें और उनके पैर छू कर आशीष लें.
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