Shardiya Navratri 2019: नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है. हिंदू शास्त्रों के अनुसार मां दुर्गा महिषासुर का वध करने के लिए यह रूप धारण किया था. कहा जाता है कि इनकी अराधना करने से भय, रोगों से मुक्ति और सभी समस्याओं का समाधान होता है. आइए जानते हैं मां दुर्गा के छठे रूप कात्यायनी की पूजा विधि, भोग, कथा, मंत्र समेत सभी जानकारी.
नई दिल्ली. शारदीय नवरात्रि शुरू हो चुके हैं. नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है. नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है. कहा जाता है कि इनकी अराधना करने से भय, रोगों से मुक्ति और सभी समस्याओं का समाधान होता है. ऐसा माना जाता है कि मां दुर्गा ने यह रूप महिषासुर का वध करने के लिए धारण किया था. मां कात्यायनी देवी का शरीर सोने की तरह चमकीला है. देवी सिंह पर सवार हैं. उनके चार हाथ हैं और दाहिने दोनों हाथों में एख अभय मुद्रा और वरद मुद्रा रहता है. वहीं दोनों बाएं हाथों में एक में तलवार और कमल का पुष्प है.
मां कात्यायनी की पूजा विधि और भोग
मां कात्यायनी की पूजा के लिए सबसे पहले मां कत्यायनी की तस्वीर को लकड़ी की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर स्थापित करें. इसके बाद मां देवी को फूलों से प्रणाम करे और देवी के मंत्र का ध्यान जरूर करें. इस दिन मां दुर्गा सप्तशती के ग्यारहवें अध्याय का पाठ करना चाहिए. मां कात्यायनी के साथ भगवान शिव की भी पूजा करनी चाहिए. हिंदू शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि के छठे दिन देवी के पूजन में शहद का विशेष महत्व है. इस दिन प्रसाद में शहद का इस्तेमाल करना चाहिए.
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मां कात्यायनी की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक समय कत नाम के प्रसिद्ध ऋषि हुए थे, जिनका नाम कात्य था. इसके बाद कात्या गोत्र में महर्षि कात्यायन ने जन्म लिया. उनकी कोई संतान नहीं थी. उनकी इच्छा थी मां भगवती उनके घर में पुत्री के रूप में जन्म लें, इसके लिए उन्होंने कठोर तप किया. मां दुर्गा ने उनकी तपस्या से प्रसन्न हो कर उन्हें पुत्री होने का वरदान दिया. कुछ समय बीतने के बाद धरती पर अत्याचार बढ़ गया. उस समय त्रिदेवों के तेज से एक कन्या ने जन्म लिया और महिषासुर नां के पापी का वध किया. कात्य गोत्र में जन्म लेने के कारण देवी का नाम कात्यायनी पड़ गया.
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