Shardiya Navratri 2019: शारदीय नवरात्र रविवार से शुरू होगा. माता रानी के भक्तों ने इसकी तैयारी भी पूरी कर ली है. कई भक्तजन मां दुर्गा के सम्मान में घरों में माता के जागरण का आयोजन करते हैं. नवरात्रि में 9 दिनों तक माता के भक्त उपवास भी रखतें हैं. नवरात्र के पांचवें दिन देवी स्कंदमाता की पूजा की जाती है. इनकी साधना से मिलती है संतान-सुख.
नई दिल्ली. Shardiya Navratri 2019: शारदीय नवरात्र 29 सितंबर से शुरू हो रहा है. नवरात्र के पांचवें दिन दुर्गा जी के पांचवे स्वरूप देवी स्कंदनमाता की पूजा की जाती है. इनकी पूजा करने से साधक के समस्त इच्छाओं की पूर्ती होती है. इसलिए नवरात्र के पांचवे दिन देवी स्कंदनमाता की पूजा- अर्चना करना चाहिए. मां स्कंदमाता की उपासना से भक्तजनों की सारे इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं. मां जगदम्बे की भक्ति के लिए इस श्लोक को कंठस्थ कर नवरात्रि के पांचवें दिन इसका जाप करना चाहिए. इनकी साधना से मिलती है संतान-सुख.
या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
मां दुर्गा के पांचवें रूप को क्यों देवी स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है:
हिंदू मान्यताओं के अनुसार भगवान स्कंद ‘कुमार कार्तिकेय’ नाम से जाने जाते है. ये प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने थे. इनको पुराणों में कुमार और शक्ति कहकर इनकी महिमा का बखान किया गया है. भगवान स्कंद के माता होने वजह से मां दुर्गा जी को के इस स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है.
देवी स्कंदमाता के स्वरूप:
स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं, इनके दाहिनी तरफ नीचे वाली भुजा में, जो उपर की ओर उठी हुई है, उसमें कमल के पुष्प है. बाई तरफ की ऊपर वाली भुजा में वरमुद्रा में और नीचे वाली भुजा जो ऊपर के तरफ उठी है उसमें में भी कमल पुष्प ली हुई हैं. देवी मां कमल के आसन पर विरजमान रहती हैं. मां का वाहन भी सिंह है.
ध्यान
वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा स्कन्दमाता यशस्वनीम्।।
धवलवर्णा विशुध्द चक्रस्थितों पंचम दुर्गा त्रिनेत्रम्।
अभय पद्म युग्म करां दक्षिण उरू पुत्रधराम् भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानांलकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल धारिणीम्॥
प्रफुल्ल वंदना पल्ल्वांधरा कांत कपोला पीन पयोधराम्।
कमनीया लावण्या चारू त्रिवली नितम्बनीम्॥
स्तोत्र पाठ
नमामि स्कन्दमाता स्कन्दधारिणीम्।
समग्रतत्वसागररमपारपार गहराम्॥
शिवाप्रभा समुज्वलां स्फुच्छशागशेखराम्।
ललाटरत्नभास्करां जगत्प्रीन्तिभास्कराम्॥
महेन्द्रकश्यपार्चिता सनंतकुमाररसस्तुताम्।
सुरासुरेन्द्रवन्दिता यथार्थनिर्मलादभुताम्॥
अतर्क्यरोचिरूविजां विकार दोषवर्जिताम्।
मुमुक्षुभिर्विचिन्तता विशेषतत्वमुचिताम्॥
नानालंकार भूषितां मृगेन्द्रवाहनाग्रजाम्।
सुशुध्दतत्वतोषणां त्रिवेन्दमारभुषताम्॥
सुधार्मिकौपकारिणी सुरेन्द्रकौरिघातिनीम्।
शुभां पुष्पमालिनी सुकर्णकल्पशाखिनीम्॥
तमोन्धकारयामिनी शिवस्वभाव कामिनीम्।
सहस्त्र्सूर्यराजिका धनज्ज्योगकारिकाम्॥
सुशुध्द काल कन्दला सुभडवृन्दमजुल्लाम्।
प्रजायिनी प्रजावति नमामि मातरं सतीम्॥
स्वकर्मकारिणी गति हरिप्रयाच पार्वतीम्।
अनन्तशक्ति कान्तिदां यशोअर्थभुक्तिमुक्तिदाम्॥
पुनःपुनर्जगद्वितां नमाम्यहं सुरार्चिताम्।
जयेश्वरि त्रिलोचने प्रसीद देवीपाहिमाम्॥
कवच
ऐं बीजालिंका देवी पदयुग्मघरापरा।
हृदयं पातु सा देवी कार्तिकेययुता॥
श्री हीं हुं देवी पर्वस्या पातु सर्वदा।
सर्वांग में सदा पातु स्कन्धमाता पुत्रप्रदा॥
वाणंवपणमृते हुं फट् बीज समन्विता।
उत्तरस्या तथाग्नेव वारुणे नैॠतेअवतु॥
इन्द्राणां भैरवी चैवासितांगी च संहारिणी।
सर्वदा पातु माँ देवी चान्यान्यासु हि दिक्षु वै॥