Shani Pradosh Vrat 2018: शनि प्रदोष व्रत का महत्व, पूजा विधि, जानिए क्यों किया जाता है ये व्रत

शनि प्रदोष व्रत 2018: हर माह की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत मनाया जाता है. इस विशेष दिन पर भगवान शिव की पूजा की जाती है. ये व्रत कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन पड़ता है. इस व्रत को करने से चारों धामों के दर्शन का पुण्य मिलता है. जानिए शनि प्रदोष व्रत की पूजा विधि, व्रत महत्व.

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Shani Pradosh Vrat 2018: शनि प्रदोष व्रत का महत्व, पूजा विधि, जानिए क्यों किया जाता है ये व्रत

Aanchal Pandey

  • May 25, 2018 6:51 am Asia/KolkataIST, Updated 6 years ago

नई दिल्ली. हर माह की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत मनाया जाता है. कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन भगवान शिव की आराधना की जाती है. ऐसा माना जाता है की जो एक वर्ष तक इस व्रत को कर ले तो उसके समस्त पाप धूल जाते हैं एवं चारों धामों के दर्शन का पुण्य मिलता है. प्रदोष काल में इस व्रत की आरती एवं पूजा होती है. संध्या के समय जब सूर्य अस्त हो रहा होता है एवं रात्रि का आगमन हो रहा होता है उस प्रहार को प्रदोष काल कहा जाता है. इस बार ये व्रत 26 मई को है.

त्रयोदशी तिथि में प्रदोष काल में पूजन का विशेष महत्व है. ऐसा माना जाता है की प्रदोष काल में शिव जी साक्षात शिव लिंग पर अवतरित होते हैं और इसीलिए इस वक़्त उनका स्मरण कर, उनका आवाहन कर के पूजन किया जाए तो सर्वोत्तम फल मिलता है. त्रयोदशी तिथि के दिन, समस्त 12 ज्योतिर्लिंगों में बहुत शोभनिय तरीक़े से भगवान की आरती एवं पूजन होता है. आप घर में रह कर भी प्रदोष काल में शिव परिवार का पूजन-अर्चन कर सकते हैं.

व्रत की विधि :
प्रातः काल उठ कर स्नान आदि से निवृत होकर, भगवान भोलेनाथ का उनके परिवार के साथ स्मरण करें. इस दिन का व्रत निर्जला व्रत होता है. दिन भर व्रत रख कर संध्या के समय, प्रदोष काल शुरू हों एसे पहले फिर से स्नान कर शुद्ध होएं इसके पश्चात साधक को सफ़ेद वस्त्र या फिर सफेद आसन पर बैठ कर पूजा करनी चाहिए. एक छोटा सा मंडप बना कर शिव परिवार स्थापित परें. एक कलश में जल भर कर आम की पत्तियों को उसमे डाल कर उसके बाद एक जटा वाला भूरा नारियल उस पर

सबसे पहले गणपति का आवाहन करें फिर समस्त देवी देवताओं को पूजा में आने का निमंत्रण दें, तद् पश्चात भगवान भोलेनाथ का माता पार्वती के साथ उपस्थित होने के लिए आवाहन करें. भोलेनाथ को पंचामृत का स्नान कराएं, फिर गंगाजल से स्नान कराएं धूप दीप, चंदन- रोलि, अक्षत, सफेद पुष्प अर्पित करें. फिर आम की लकड़ी से हवन करें. हवन की आहुति, चावल की बनी हुई खीर से करें. भगवान भोले भण्डारी का सबसे प्रिय भोजन चवाल की खीर है, उन्हें इसका भोग लगाने से वह बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं एवं अपने भक्तों की मनोकामनाओं को अवश्य पूर्ण करते हैं. आप अगर उन्हें खीर की आहुति देंगे तो ऐसा करने से भोलेनाथ अवश्य प्रसन्न होंगे एवं आपकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण अवश्य होंगी.

उनका स्मरण कर थोड़ी देर ध्यान अवस्था में बैठ जाएँ या फिर महामृत्युंजय का 108 बार जप करें. प्रदोष व्रत की कथा पड़ कर आरती करें. वैसे तो हर महीने दो त्रयोदशी आती हैं , कभी कभी खल मास की वजह से दो और आ जाती हैं. अलग अलग दिन पड़ने वाली त्रयोदशी को अलग अलग नामों द्वारा पुकारा जाता है. इस वर्ष अधिक मास में शनि त्रयोदशी पड़ने से इसका महत्व और भी बड़ गया है. शनि की साड़ेसाती से मुक्त होने के लिए यह त्रयोदशी अत्यंत फल दायीं है. आज के दिन दान पुण्य करना भी सौभाग्यवर्धक होता है एवं जीवन में कष्टों से मुक्ति देता है.

1. सोमवार को पड़ने वाली त्रयोदशी बहुत शुभ मानी जाती है एवं इसे सोम प्रदोष / त्रयोदशी बोला जाता है. इस दिन का व्रत रखने से सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है।
2. मंगलवार को पड़ने वाली त्रयोदशी को अंगरकि त्रयोदशी या भौम प्रदोष / त्रयोदशी बोला जाता है. इस दिन व्रत उपवास रखने से सेहत से सम्बंधित परेशानियों से मुक्ति मिलती है.
3. बुद्धवार को पड़ने वाली त्रयोदशी को सौम्यवारा प्रदोष भी बोला जाता है. ज्ञान प्राप्ति के लिए एवं तेज़ बुद्धि के लिए इस दिन उपवास अवश्य रखना चाहिए.
4. गुरुवार को पड़ने वाली त्रयोदशी को गुरूवारा प्रदोष भी बोला जाता है. इस दिन पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए विशेषकर पूजन किया जाता है. शत्रु हनन के लिए भी इस दिन का व्रत मान्य है.
5. शुक्रवार को पड़ने वाली त्रयोदशी को भृगुवारा प्रदोष के नाम से पुकारा जाता है. धन धान्य, सुख समृद्धि को प्राप्त करने के लिए इस दिन पूजा-अर्चना की जाती है.

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