अध्यात्म

शबरी जयंती 2018: जानें, पौराणिक कथा और पूजन विधि

नई दिल्ली. शबरी जयंती फाल्गुन मास की सप्तमी को मनाया जाता है. शबरी भगवान राम की परम भक्त थीं. भगवान राम ने अपने समय में रामराज्य को स्तापिथ किया , ऐसाराज्य जहां हर व्यक्ति एक समान है , कोई भी जात पात नही है. ईश्वर के समक्ष तो वैसे भी सब एक रूप ही होते हैं. भगवान राम ने तो वैसे भी मानव शरीर में आ कर उस समय चलने वाली कई कूरितियों को समाप्त किया , फिर वह अहलिया का उद्धार ही क्यों ना हो , या फिर शबरी के बेर खाना ही क्यों ना हो.

पौराणिक कथा

शबरी एक साधारण सी दिखने वाली भील कन्या थी, जब उनके पिता ने उनका विवाह तय किया तो भील जाती के नियम अनुसार कई भेड़ – बकरियों को विवाह पूर्वबलि देने के लिए इकट्ठा किया. शबरी का कोमल हृदय इस नियम को अपना नहीं पाया, रात भर सोचती रही की कैसे इन भेड़ बकरियों की जान बचा पाए और एक ही विचार सामने प्रकट हुआ की मेरा विवाह ही नहीं होगा तो इन भेड़ बकरियों का वध भी नहीं किया जाएगा. ऐसा विचार मन में प्रकट होने के पश्चात शबरी से रहा नहीं गया और वह जंगल की तरफ घर छोड़ कर चली गयी. विवाह तो नहीं हुआ लेकिन भील समाज से तिरस्कृत हो वह जंगल में भटकने लगी. वन के कई आश्रमों में उन्होंनेआश्रय मांगा पर हर जगह उन्हें अछूत बोल कर तिरस्कार किया गया. अंत में मतंग ऋषि ने उन्हें अपने आश्रम में शरण दी एवं समस्त ज्ञान, ध्यान की बातें भी सिखाई . ऋषि मतंग के जब देह छोड़ने का समय आया तो शबरी की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्होंने शबरी को वरदान दिया और कहा की तुम इस आश्रम की देख रेख करो क्योंकि एक दिन विष्णु अवतार भगवान राम इस आश्रम में अवश्य आएंगे एवं तुम्हें दर्शन दे कर मोक्ष प्रदान करेंगे. तुम मन से उनकी सेवा करना.

ऋषि मतंग के प्राण त्यागने के बाद शबरी रोज भगवान राम के आने का इंतजार करती , आश्रम को फूलों से सजाती एवं जंगल से फल ला कर रखती. एक दिन फलफूल ढूंढते हुए शबरी एक तालाब के किनारे पहुंची , उस जलाशय का जल ग्रहण कर ही रही थी की , किनारे तपस्या कर रहे एक ऋषि ने उन्हें ज़ोर से डांट लगायी और एक पत्थर शबरी को मारा, अछूत कह कर उन्हें वहां से चले जाने को कहा. शबरी के खून के छींटे उस तालाब में भी गिर गए, वह रोती हुई वापस आश्रम पहुंची. तालाब का सारा पानी खून से लाल हो गया, ना तो ऋषि की तपस्या का तेज, ना गंगा जल कुछ भी उस तालाब को वापस जलाशय में परिवर्तित नहीं कर पाए. उसी समय भगवान राम का भी वही आना हुआ. समस्त ऋषिवरों ने भगवान राम से विनती की, हे प्रभु आप के स्पर्श से तो अहिलया भी पत्थर से मनुष्य में परिवर्तित हो गयी आप के चरण पड़ते ही यह जलाशय भी शुद्ध हो जाएगा. प्रभु बोले , हे ऋषि वर , यह जलाशय तो किसी की पीड़ा का प्रतीक लग रहा है, जिनकी पीड़ा से यह ऐसा हुआ है उन्ही के स्पर्श से इसका उद्धार होगा.

उसी समय शबरी को भगवान राम के आने की खबर लगी और वह दौड़े दौड़े अपने प्रभु के दर्शन के लिए आयी. उनके पैरों से उड़ती हुई धूल जैसे ही उस जलाशय पर पड़ी, वह वापस जल में परिवर्तित हो गया. प्रभु की बात सत्य हुई एवं उपस्थित ऋषि अपनी करनी पर शर्मिंदा हुए.

शबरी के आग्रह पर भगवान राम उनके आश्रम पर पहुंचे. ईश्वर की भक्ति एवं प्रेम में लिप्त शबरी बेरों को चख चख कर भगवान राम को देतीऔर वह उतने ही प्रेम से उन्हें ग्रहण किया. उनके द्वारा दिए हुए झूठे बेर भी बहुत मन से प्रसन्न हो कर खाए. कोल जाती से सम्बंधित शबरी के द्वारा दिए हुए जूठे बेर खाकर भगवान ने समस्त समाज को ये बताने की कोशिश की , कि भक्ति भावना ही सर्वोपरि भावना है, जो सच्चे मन से ईश्वर का स्मरण करता है , उन्हें ईश्वर दर्शन देकर उनकी प्रार्थना स्वीकार करते हैं. शबरिमाला मंदिर में आज के दिन खास तौर पर मेला लगता है एवं पूजनअरचन होता है. शबरी को देवी का स्थान प्राप्त हुआ एवं साथ ही साथ मोक्ष की प्राप्ति भी हुई. आज के दिन शबरी को देवी स्वरूप में पूजा जाता है, यह जयंती श्रद्धा एवं भक्ति द्वारा मोक्ष प्राप्ति का प्रतीक है.

नारायण तो समस्त ब्रह्मांड के रखवाले हैं, सभी प्राणियों का लालन पालन भी उन्ही की कृपा से होता है. शबरी माला देवी की पूजा करने से वैसे ही भक्ति भाव की कृपा मिलती है जैसे शबरी ने भगवान राम से प्राप्त की थी. देवी का स्मरण कर भगवान राम के समस्त परिवार को ‘बेर’ फल स्वरूप भोग लगाएं. सफ़ेद चंदन से तिलक करें, शुभ ही शुभ होगा.

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Aanchal Pandey

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