सावन मास: भोलेनाथ की पूजा, सोमवार व्रत और कांवड़ यात्रा का महत्व

पवित्र सावन मास में भगवान भोलेनाथ की पूजा, सोमवार व्रत और कांवड़ यात्रा का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है। इस महीने में सोमवार के दिन

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सावन मास: भोलेनाथ की पूजा, सोमवार व्रत और कांवड़ यात्रा का महत्व

Anjali Singh

  • July 5, 2024 7:15 pm Asia/KolkataIST, Updated 4 months ago

Kawad Yatra 2024: पवित्र सावन मास में भगवान शिव की पूजा, सोमवार व्रत और कांवड़ यात्रा का हिन्दू धर्म में काफी विशेष महत्व है। इस महीने में सोमवार के दिन सभी फेमस शिव मंदिर “बम बम बोले” और “हर हर महादेव” के नारों से गूंज उठते है। साल 2024 में सावन माह की शुरुआत 22 जुलाई से हो रही है। आइए जानते हैं, इस बार सावन में कांवड़ यात्रा कब शुरु होगी, इसका महत्व क्या है और कांवड़ यात्रा से क्या नियम जुड़े हैं?

कांवड़ क्या है?

कांवड़ बांस की लकड़ी से बने एक डंडे को कहते हैं, जिसके दोनों सिरों पर डोरियों के सहारे दो कलश लटके होते हैं। इन कलशों में गंगा, नर्मदा, क्षिप्रा जैसी पवित्र नदियों का जल भरा होता है, जिसे कंधे पर ढोकर यात्रा की जाती है। बांस न मिलने पर शुभ लकड़ियों से भी कांवड़ बनाए जाते हैं। कांवड़ को रंग-बिरंगे चमकीले पताकों और फूलों से सजाया जाता है। इस पर भगवान शिव के प्रतीक, जैसे त्रिशूल, नाग, नंदी बैल और शिवलिंग आदि भी जड़े जाते हैं।

कांवड़ यात्रा का महत्व

सावन के पवित्र महीने में कांवड़ यात्रा का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यता है कि कांवड़ यात्रा करने से इंसान के सभी पाप,पीडा और दुःख नष्ट हो जाते हैं, रोग और क्लेश से मुक्ति मिलती है। यात्रा में कांवड़ से ढोकर लाए गए जल के अभिषेक से भगवान शिव तुरंत प्रसन्न हो जाते हैं और जीवन के हर क्षेत्र में खुशिया होती है। कांवड़ यात्रा करने वाले शिव भक्तों को ‘कांवड़िया’ कहा जाता है। मान्यता है कि पूरे कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़िया को बहुत पवित्र माना जाता है और उनका अनादर या अपमान पाप माना जाता है।

कब शुरू होगी कांवड़ यात्रा?

इस साल 2024 में सावन की शुरुआत 22 जुलाई, सोमवार से हो रही है और भगवान भोलेनाथ का पहला जलाभिषेक इसी दिन होगा। इसके लिए कांवड़ यात्रा 18 जुलाई से ही शुरू हो जाएगी। पंडितों के अनुसार, लंबी यात्रा करने वालों के लिए आषाढ़ शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि (18 जुलाई, 2024) सर्वोत्तम है, ताकि वे सोमवार को बाबा भोलेनाथ को जल अर्पित कर सकें।

यात्रा के लिए तिथियां

कम दूरी तक यात्रा करने वाले भक्त चतुर्दशी तिथि और फिर अगर उससे भी कम दूरी तक जाने वाले श्रद्धालु पूर्णिमा के दिन अपनी कांवड़ यात्रा शुरूकर सकते हैं, ताकि वो भक्त समय पर यानी सावन के पहले सोमवार को शिवजी का जलाभिषेक कर पाएं। कांवड़िया को त्रयोदशी, चतुर्दशी या पूर्णिमा तिथि का निर्धारण यात्रा की दूरी और अपने पैदल चलने की क्षमता के अनुसार करनी चाहिए।

यात्रा के नियम

कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़ सहित अपनी शुचिता और पवित्रता का ध्यान रखना बहुत जरूरी है। किसी भी प्रकार के अनुचित कार्य से बचना चाहिए और यात्रा को एक पवित्र उद्देश्य के साथ करना चाहिए। सावन मास में कांवड़ यात्रा का महत्व अनमोल है और यह भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है। इसलिए, इस सावन में अपनी भक्ति को और भी प्रबल बनाएं और भगवान शिव की कृपा प्राप्त करें।

 

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