Saphala Ekadashi 2019 Date Calendar: सफला एकादशी हिंदुओं के लिए महत्वपूर्ण एकादशी है. इस दिन विष्णु जी के हर रूपों की पूजा की जाती है. इस व्रत को रखने से पाप से छूटकारा मिलता है और व्यक्ति के जीवन में खुशहाली आती है. इस साल यह व्रत 22 दिसंबर 2019 को मनाया जाएगा.
नई दिल्ली. सफला एकादशी व्रत पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन किया जाता है. इस साल यह व्रत 22 दिसंबर 2019 को मनाया जाएगा. सफला एकादशी वाले दिन भगवान नारायण की पूजा का विशेष महत्व माना जाता है. हिंदू शास्त्रों में मान्यता है कि यह एकादशी व्रत को करने से कई पीढियों के पाप दूर हो जाते हैं. एकादशी व्रत व्यक्ति करने से व्यक्ति के जीवन में सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और जब यह व्रत श्रध्दा और भक्ति के साथ किया जाता है तो मोक्ष देता है.
सफला एकादशी का मुहूर्त: Saphala Ekadashi 2019 Subh Muhurat
सफला एकादशी 2019 पारणा मुहूर्त: 07 बजकर 10 मिनट से शुरू होगा और 23 जनवरी को 09 बजकर 14 मिनट तक रहेगा
अवधि: 2 घंटे 3 मिनट
सफला एकादशी 2019 व्रत पूजा: Saphala Ekadashi 2019 Puja Vidhi
सफला एकादशी के व्रत में विष्णु भगवान की पूजा की जाती है. इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करके व्रत का संकल्प ले लेना चाहिए. इसके बाद पूरे विधि विधान से भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए. व्रत में व्यक्ति को सात्विक भोजन ही करना चाहिए और भोजन में नमक का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. रात में भगवान विष्णु और नारायण देव का पंचामृत से पूजन करना चाहिए और विष्णु नाम का पाठ करते हुए जागरण करना चाहिए. व्रत के अगले दिन यानी द्वादशी वाले दिन स्नान करने के बाद ब्रह्माणों को अत्र और धन की दक्षिणा देकर व्रत का समापन करें.
सफला एकादशी 2019 व्रत कथा: Saphala Ekadashi 2019 Vrat Katha
प्राचीन काल में चंपावती नगर में राजा महिष्मत राज किया करते थे. राजा के 4 पुत्र उनमें ल्युक बड़ा ही दुष्ट और पापी था. वह पिता के धन को कुकर्मों में नष्ट रहता था. एक दिन दुखी होकर राजा ने उसे देश निकाला दे दिया लेकिन इसके बाद भी उसकी लूटपाट की आदत नहीं छूटी. एक समय उसे 3 दिन तक भोजन नहीं मिला और वह भटकता हुआ एक साधु की कुटिया पर पहुंच गया. महात्मा ने उसका सत्कार किया और उसे भोजन कराया ऐसे करने पर उसकी बुध्दि में बदलाव आया. वह साधू के चरणों में गिर पड़ा. साधू ने उसे अपना शिष्य बना लिया जिसके बाद धीरे-धीरे ल्युक का चरित्र निर्मल हो गया और महात्मा की आज्ञा से वो एकादशी का व्रक रखने लगा. जब वह बदल गया तो महात्मा ने उसके सामने अपना असली रूप प्रकट किया. महात्मा के वेश में स्वयं उसके पिता ही थे. इसके बाद ल्युक ने राज भार संभाला और आजीवन सफला एकादशी का व्रत रखने लगा.