नई दिल्लीः जैन समाज में रोहिणी व्रत का विशेष महत्व है। यह व्रत मुख्य रूप से महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र की कामना के लिए करती हैं। यह भी माना जाता है कि जो कोई भी इस व्रत को पूजा-अर्चना के साथ करता है उसके जीवन से सभी प्रकार के दुख दूर हो जाते हैं। ऐसे में हम आपको रोहिणी से जुड़े कुछ जरूरी नियमों के बारे में बताएंगे।
रोहिणी व्रत का न केवल जैन धर्म बल्कि हिंदू धर्म में भी विशेष महत्व है। हिंदू धर्म में इस व्रत का संबंध देवी लक्ष्मी से माना जाता है, वहीं जैन धर्म में यह दिन भगवान वासु स्वामी की पूजा को समर्पित है। रोहिणी व्रत जैन समुदाय में उपवास के सबसे महत्वपूर्ण दिनों में से एक माना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार इस व्रत को करने से महिलाओं को अखंड सुहाग का वरदान मिलता है।
रोहिणी व्रत के दिनों में साफ-सफाई और पवित्रता पर बहुत जोर देना चाहिए।
रोहिणी व्रत रोहिणी नक्षत्र के दिन से लेकर अगले नक्षत्र मार्गशीर्ष तक मनाया जाता है।
इस व्रत वाले दिन भगवान वासु स्वामी की पंच रत्न, तांबे या सोने की मूर्ति या पुतला स्थापित करना चाहिए।
रोहिणी व्रत के दौरान सूर्यास्त के बाद कुछ भी खाने की मनाही होती है।
रोहिणी व्रत लगातार 3, 5 या 7 साल तक करना चाहिए।
व्रत के दिन गरीबों को भोजन, वस्त्र आदि का दान करना चाहिए। यह आपको अपनी भौतिक भलाई बढ़ाने की अनुमति देता है।
रोहिणी व्रत का समापन उद्यापन के साथ ही करना चाहिए। उड़ियापान के बिना यह लगभग अधूरा माना जाता है।
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