Rameshwaram: प्रभु श्रीराम लंका विजय की तैयारी में लगे थे। इसके लिए उन्हें महादेव का आशीर्वाद चाहिए था। राम इसके लिए रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना करना चाहते थे लेकिन पुरोहित नहीं मिल रहा था। लंकाधीश रावण रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना के समय पुरोहित बन गया था। हालांकि वो पुरोहित कैसे बना इसका जिक्र […]
Rameshwaram: प्रभु श्रीराम लंका विजय की तैयारी में लगे थे। इसके लिए उन्हें महादेव का आशीर्वाद चाहिए था। राम इसके लिए रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना करना चाहते थे लेकिन पुरोहित नहीं मिल रहा था। लंकाधीश रावण रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना के समय पुरोहित बन गया था। हालांकि वो पुरोहित कैसे बना इसका जिक्र वाल्मीकि रामायण और तुलसीकृत रामायण में नहीं है लेकिन तमिल भाषा में लिखी गई महर्षि कम्बन की इरामावतारम में इस कथा का वर्णन है। आइये जानते हैं वो कथा जब रावण श्री राम के पुरोहित बने।
समुद्र तट के किनारे के जंगल में सिर्फ पेड़, जानवर और आदिवासी रहते थे, वहां ब्राह्मण कहा से आता। जामवंत ने श्री राम के सामने कहा कि विशश्रवा का पुत्र, पुलस्त्य मुनि का पौत्र और मय का जामाता रावण तो परम वैष्णव और रीति -नीति का ज्ञाता है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल था कि यह यज्ञ तो उसी के खिलाफ है तो हम उसे क्या कहेंगे? जामवंत की बात सुनकर राम ने कहा कि जो हमारी जरूरत है, आप वहीं कहना। इसके बाद जामवंत लंका पहुंचे और उन्होंने रावण के सामने कहा कि जंगल में मेरे एक यजमान यज्ञ करना चाहते हैं तो आपसे अनुरोध है कि आप उनके पुरोहित बन जाएं।
रावण ने जब जामवंत से प्रश्न किया कि यजमान कौन है तो इसका जवाब उन्होंने दिया कि अयोध्या के महाराज दशरथ के पुत्र राजकुमार राम हैं। समुद्र के उस पार शिवलिंग की स्थापना करना चाहते हैं। रावण ने मुस्कुराते हुए कहा कि क्या राम शिवलिंग की स्थापना लंका विजय की कामना से करना चाहते हैं तो जामवंत ने हां में सिर हिलाया। रावण ने राम का आचार्यत्व स्वीकार कर लिया। उन्होंने जामवंत से कहा कि आप यजमान से कहिए कि वे स्नान करके पूजन के लिए तैयार हो जाएं। सारी वस्तुएं मैं उपलब्ध करा दूंगा। रावण इसके बाद माता सीता के पास गया क्योंकि वो राम की अर्द्धांगिनी थी लेकिन यज्ञ में उनका उपस्थित रहना जरुरी था।
माता सीता यज्ञ में शामिल होती हैं। मां जानकी के हाथों ही शिवलिंग स्थापित होता है। यज्ञ संपन्न होने के बाद राम और सीता ने रावण को प्रणाम किया और दक्षिणा के लिए पूछा। आचार्य रावण ने हंसते हुए कहा कि आप वनवासी हैं मुझे दक्षिणा देने के लिए आपके पास कुछ नहीं है। राम नहीं मानें, रावण से फिर दक्षिणा के लिए पूछा तो रावण ने कहा कि मैं इतना चाहता हूं कि जब मेरा अंतिम समय आये तो मेरा यजमान मेरे सामने उपस्थित रहे। राम समझ गये रावण पहचान लिया है और अपना भविष्य भी जान रहा है. रावण बहुत बड़ा भविष्यदृष्टा था। उसने अपने लिए श्रीराम से सर्वोत्तम दक्षिणा की मांग की। राम ने अपना वायदा निभाया उसके आखिरी समय में प्रभु राम उपस्थित हुए।
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