Putrada Ekadashi 2019: अगर विवाह के पांच वर्ष बाद भी आपको संतान की प्राप्ति नहीं हो रही है तो भगवान श्रीकृष्णा की मूर्ति घर में लगाना चाहिए. इस दिन पति-पत्नी को 'ॐ क्लीं कृष्णाय नम: ' का मत्र कम से कम 108 बार जपना चाहिए. इस दिन उपवास रखने से हमारा शरीर मजबूत होता हौ और हमारे अंदर जितने भी विकार होते हैं वो दूर हो जाते हैं.
नई दिल्ली: उपवास एकदशी का हमारे जीवन में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है. पौष में शुक्ल पक्ष में एकादशी सा व्रत रखा जाता है. इस व्रत को रखने से मन में स्थिरता आने के साथ-साथ जीवन सुखमय होता है. ऐसा माना जाता है कि एकादशी व्रत रखने से जीवन में सरलता आती है. इस दिन उपवास रखने से हमारा शरीर मजबूत होता है और हमारे अंदर जितने भी विकार होते हैं वो दूर हो जाते हैं. इस दिन व्रत रखने से संतान की पैदा होने जैसी समस्याएं भी दूर होती हैं. इस बार पुत्रदा एकादशी 17 जनवरी को पड़ रही है. पुत्रदा एकादशी के दिन उपवास को रखने के लिए कई तरह के विधि-विधानों से गुजरना पड़ता है. इस दिन हम उपवास दो तरीके से रख सकते हैं- फलाहारी और निर्लज उपवास. निर्लज उपवास उन्हीं लोगों को रखना चाहिए जो शारीरिक रूप से स्वस्थ्य हैं. जो लोग शारीरिक रूप से कमजोर हैं वो इस उपवास को न रखें क्योंकि इस उपवास के दौरान व्यक्ति को दिन भर कुछ नहीं खाना पड़ता है . आप पानी या किसी भी तरल पदार्थ का सेवन भी नहीं कर सकते हैं.
फलाहारी उपवास सामान्य लोग रख सकते हैं. क्योंकि इसके उपवास के दौरान आप फल का सेवन कर सकते हैं. संतान प्राप्ति के लिए इस दिन भगवान कृष्ण या फिर श्री नारायण की पूजा करनी चाहिए. पति और पत्नी को गोपाल मंत्र का जाप करना चाहिए. मनोकामना की पूर्ति के लिए भगवान को प्रसाद चढाना चाहिए. भगवान को चढ़ाए गए प्रसाद को पति-पत्नी को संयुक्त रुप से खाना चाहिए. ऐसा करने से आप के जीवन में सबकुछ ठीक हो जाएगा. इस दिन भगवान की पूजा करने से आपके जीवन में खुशहाली आएगी. आपके जीवन की सारी कठिनाईयां खत्म हो जाएगी.
अगर विवाह के पांच वर्ष बाद भी आपको संतान की प्राप्ति नहीं हो रही है तो भगवान श्रीकृष्णा की मूर्ति घर में लगाना चाहिए. मूर्ति पर पीले रंग का वस्त्र चढाना चाहिए. पति-पत्नी को इस दिन पीला भोजन ग्रहण करना चाहिए ऐसा करने से सारी समस्याएं दूर हो जाएंगी. इसके अलावा पति-पत्नी तुलसी की माला गले में धारण कर सकते हैं. इस दिन पति-पत्नी को ‘ॐ क्लीं कृष्णाय नम: ‘ का मत्र कम से कम 108 बार जपना चाहिए.