नई दिल्ली: दक्षिण भारत में तमिल हिंदु पोंगल का त्योहार धूमधाम से मानाते हैं. पोंगल हर साल 14-15 जनवरी को मनाया जाता है. पोंगल का त्योहार संपन्नता और समृद्धि का प्रतीक होता है. पोंगल त्योहार में वर्षा, धूप और खेतिहर मवेशियो की आराधना की जाती है. तमिलनाडु में पोंगल के दिन सरकारी अवकाश होता है. वहीं पोंगल और मकर संक्रान्ति में संबंध भी हैं चलिए जानते हैं मकर संक्रान्ति, लोहड़ी व पोंगल का संबंध
14 जनवरी के दिन उत्तर भारत में मकर संक्रान्ति का त्योहार मनाया जाता है. गुजरात और महाराष्ट्र में मकर संक्रान्ति को उत्तरायन कहते हैं. पंजाब में इस लोहड़ी के नाम से मनाया जाता है. इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है जिसका स्वागत किया जाता है. सूर्य को अन्न धन का भगवान के लिए यह त्योहार चार दिन तक मानाया जाता है.
दक्षिण भारत में इस त्योहार को पोंगल के नाम से क्यो जाना जाता है. दरअसल इस दिन सूर्य देव को जो प्रसाद अर्पित किया जाता है वह पगल कहलाता है तमिल भाषा में पोंगल का एक अर्थ अच्छी तरह उबालना है इस तरह सूर्य देव उबाल कर प्रसाद का भोग लगाते हैं. पोंगल का विशेष महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह तमिल में महीने की पहली तारीख होती है. पोंगल का त्योहार चार दिनों तक मानाया जाता है. हर दिन पोंगल का अलग अलग नाम होता है.
भोगी पोंगल- पोंगल के पहले दिन को भोगी पोंगल कहते हैं. इस दिन देवराज इन्द्र की पूजा की जाती हैं. इस दिनों लोग अपने घर में पुराने कपड़े और कूड़े को एक जगह इकट्ठा करके उसे जलाते हैं यह भगवान के प्रति सम्मान और बुराई के अंत की भावना होती है. इस दिन यूवा रात को भोगी कोट्टम बजाते हैं.
सूर्य पोंगल- दूसरे दिन सूर्य पोंगल का त्योहार होता है, दूसरा दिन भगवान सूर्य देव को समप्रित होता है. इस दिन विशेषा प्रकार की खीर बनाई जाती हैं, यह खीर मिट्टी के बर्तन में नए धान से तैयार चावल की खीर होती है. यह खीर सूर्य देव को स्पेशल प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है.
मट्टू पोंगल- तीसरे पोंगल को मट्टू पोंगल कहते हैं. तमिल मन्यताओं का मानना है कि मट्टू भगवान शिव का बैल है जिसे शंकर भगवान ने पृथ्वी पर रहकर इंसान के लिए अन्न पैदा करने के लिए कहा तब यह इंसान की मदद करते हैं इस दिन सभी किसान अपने बैलों को स्ना करवाते हैं. उनके सिंगो पर तेल लगाते है उन्हें सजाया जाता है.
कन्या पोंगल- पोंगल के अंतिम दिन को कन्या पोंगल के नाम से जानते हैं, इसे स्थानीय लोग तिरूवल्लूर के नाम से पुकारते हैं. इस दिन घर को सजाया जाता है. आम के पत्ते से घर बाहर तोरण बनाया जाता है. इस दिन महिलाएं घर के बाहर रंगोली बनाती हैं. इस नए कपड़े पहने जाते हैं, दूसरों के घर मिठाई दी जाती हैं, इस बौलों की लड़ाई की जाती हैं जो कि दक्षिण भारत में काफी फेमस है
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