नई दिल्ली: पितृपक्ष के दौरान लाखों लोग बिहार के गया में पिंडदान करने के लिए पहुंचते हैं। लेकिन आखिर क्यों गया में पिंडदान का इतना महत्व है? पौराणिक कथाओं और धार्मिक शास्त्रों में इसका विस्तृत वर्णन मिलता है, जो बताता है कि यहां पिंडदान करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है और श्राद्ध करने वाले पर पितरों का आशीर्वाद बना रहता है।
पौराणिक कथा के अनुसार त्रेता युग में गयासुर नामक एक असुर था, जो भगवान विष्णु का परम भक्त था। गयासुर ने भगवान विष्णु से ऐसा वरदान प्राप्त किया था कि उसके शरीर पर सभी देवी-देवता निवास करेंगे और उसे देखने मात्र से लोगों के पाप नष्ट हो जाएंगे। इसके चलते लोग गयासुर को स्पर्श कर स्वर्ग प्राप्त करने लगे।
धर्मराज को चिंता होने लगी कि इससे उनकी जिम्मेदारी प्रभावित हो रही है। फिर ब्रह्मा जी ने गयासुर का शरीर यज्ञ के लिए मांगा, जिसके बाद भगवान विष्णु ने उसके शरीर को स्थिर कर दिया। तब से गया में पिंडदान करने से पूर्वजों को मुक्ति मिलती है और श्राद्ध करने वालों को पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है।
शास्त्रों के अनुसार, गयासुर का शरीर पांच कोस में फैला हुआ माना जाता है। पहले यहां 360 वेदियां थीं, जिनमें से अब केवल 48 ही शेष बची हैं। गया में फल्गु नदी के किनारे स्थित अक्षयवट पर पिंडदान करना विशेष महत्व रखता है। इसके अलावा पांडुशिला, रामशिला, प्रेतशिला, सीताकुंड, रामकुंड और कई अन्य स्थान भी पिंडदान के लिए प्रमुख माने जाते हैं।
पितृपक्ष 2024 में 17 सितंबर से 2 अक्टूबर तक चलेगा, जिसमें हर दिन अलग-अलग तिथियों पर पिंडदान किया जाएगा। ये तिथियां हैं
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, गया में पिंडदान करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और पिंडदान करने वाला पितृ ऋण से मुक्त हो जाता है। पिंडदान की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और यह मान्यता है कि जो भी व्यक्ति गया में अपने पितरों का श्राद्ध करता है, उसके पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
नोट: इस लेख में दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्रों पर आधारित है। किसी भी धार्मिक अनुष्ठान को अपनाने से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।
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