नई दिल्ली. हिंदू धर्म के अनुसार हर महीने में एक एकादशी आती है. 12 महीने में कुल 23 एकादशियां आती हैं. एकादशी का खास महत्व होता है. माना जाता है कि एकादशी के दिन व्रत रखने या पूजा करने से मनोकामना पूरी होती है और पाप नष्ट हो जाते हैं. एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. इनमें से एक एकादशी है परिवर्तिनी एकादशी. इसे पद्मा एकादशी और वामन एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. परिवर्तिनी एकादशी को भाद्रपद की शुक्ल पक्ष को मनाया जाता है. इसके नाम के अनुसार इस एकादशी का महत्व परिवर्तन यानि की बदलाव है. माना जाता है कि इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु शेषनाग पर सोते हुए नींद नें करवट बदलते हैं. मान्यता है कि भगवान विष्णु परिवर्तिनी एकादशी के दिन करवट बदलते हुए प्रसन्न मुद्रा में होते हैं. इस दौरान भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण होती है. माना जाता है कि इस एकादशी पर विधि अनुसार व्रत और पूजा करने के साथ भगवान से जो मांगो वो मिल जाता है. इस साल ये एकादशी 19 सितंबर 2019 को है. जानें इस एकादशी का शुभ मुहूर्त और इसकी पूजा- व्रत विधि.
परिवर्तिनी एकादशी शुभ मुहूर्त
परिवर्तिनी एकादशी पूजा और व्रत विधि
परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा
व्रत के दौरान भगवान विष्णु के वामन अवतार को ध्यान में रखते हुए इस कथा को पढ़ें.
कथा- त्रेता युग में राजा बलि था. राजा बलि राजा विरोचन का पुत्र और प्रहलाद का पौत्र था. वो भगवान विष्णु का महान भक्त था. बलि ब्रह्मणों की बहुत सेवा करता था. हालांकि बलि ने राक्षस कुल में जन्म लिया था लेकिन वो फिर भी भगवान विष्णु का भक्त बना. बलि द्वारा पूजा- अर्चना और उसकी भक्ति और प्रार्थना देख भगवान विष्णु प्रसन्न हो गए. राजा बलि ने भगवान की अराधना, अपने तप, पूजा और विनम्र स्वभाव से अनेकों शक्तियां प्राप्त और अर्जित कीं. इतना ही नहीं बल्कि इन्द्र के देवलोक के साथ त्रिलोक पर अधिकार कर लिया. राजा बलि के ऐसा करने से देवता लोकविहीन हो गए. देवताओं के अधिकार उनके पास नहीं रहे. अधिकार जाने से सृष्टि की व्यवस्था गड़बड़ाने लगी. तब देवताओं ने राजा बलि के इष्ट देव भगवान विष्णु का आह्वाहन किया.
भगवान विष्णु ने इन्द्र को राज्य वापस दिलवाने के लिए वामन अवतार धरा. भगवान विष्णु वामन यानि एक बौने ब्रह्माण का रूप धर राजा बलि के पास पहुंचे. इस अवतार में भगवान के हाथ में एक लकड़ी का छाता था. वामन अवतार में भगवान विष्णु ने राजा बलि से अपने रहने के लिए तीन कदम के बराबर भूमि की गुजारिश की. गुरू शुक्रचार्य ने राजा बलि को भूमि देने से मना किया लेकिन फिर भी राजा बलि ने वामन को तीन पग भूमि देने का वचन दे दिया.
राजा द्वारा वचन देने के बाद वामन ने अपना आकार बढ़ाना शुरू किया. उन्होंने अपना आकार इतना बढ़ा लिया कि उन्होंने पहले कदम में पूरी पृथ्वी को नाप लिया, दूसरे कदम में उन्होंने देवलोक को नाप लिया. इसके बाद उनके तीसरा कदम लेने के लिए कोई भूमि ही नहीं बची. राजा बलि अपने वचन के पक्के थे. उन्होंने वामन के तीसरे कदम के लिए अपना सिर वामन के सामने प्रस्तुत कर दिया. वामन रूप में वहां खड़े भगवान विष्णु राजा बलि की भक्ति और वचनबद्धता से प्रसन्न हुए. उन्होंने प्रसन्न होकर राजा बलि को पाताल लोक का राज्य दे दिया. इसके अलावा भगवान विष्णु ने राजा बलि को वरदान दिया कि चतुर्मास अर्थात चार माह में उनका एक रूप क्षीर सागर में शयन करेगा और दूसरा रूप राजा बलि के पाताल में उस राज्य की रक्षा के लिए रहेगा.
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