Padmini Ekadashi 2018: पद्मिनी एकादशी का व्रत करने से होगी हर मनोकामना पूरी, जरूर पढ़ें कमला एकादशी व्रत कथा

पद्मिनी एकादशी को कमला और पुरुषोत्तम एकादशी के नाम से जाना जाता है. इस दिन भगवान विष्णु मां लक्ष्मी के साथ साथ भगवान शिव की पूजा की जाती है. तीन सालों में एक बार आने वाला मलमास व्रत कथा को पढ़ कर व्रत पूरा किया जाता है. इस व्रत को करने से पुत्र प्राप्ति और अन्य सुख प्राप्त होते हैं.

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Padmini Ekadashi 2018: पद्मिनी एकादशी का व्रत करने से होगी हर मनोकामना पूरी, जरूर पढ़ें कमला एकादशी व्रत कथा

Aanchal Pandey

  • May 23, 2018 8:25 am Asia/KolkataIST, Updated 6 years ago

नई दिल्ली. वर्ष भर में 24 एकादशी होती हैं जिनका अलग अलग अर्थ और महत्व होता है. मलमास या अधिक मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को पद्मिनी एकादशी, कमला एकादशी व पुरुषोत्तम एकादशी के नाम से जाना जाता है. ये एकादशी तीन साल में एक बार आती है. जिस वर्ष पद्मिनी एकादशी पड़ती है उस साल पूरे वर्ष 26 एकादशी होती है. इस एकादशी पर भगवान विष्णु के साथ साथ भगवान शिव-पार्वती जी की भी पूजा की जाती है.

पद्मिनी एकादशी, कमला एकादशी व्रत कथा
प्राचीन समय में एक राजा था. उसकी 1000 से भी ज्यादा रानियां थीं. कहने को राजा की हजार रानियां थी लेकिन राजा को एक भी पुत्र नहीं था. जिसकी वजह से राजा चिंता में रहता था कि उसके जाने के बाद उसका इतना बड़ा राज-पाट कौन संभालेगा. राजा ने इस समस्या के लिए हर तरह के वैध, चिकित्सा आदि के द्वारा उपाय किया लेकिन फिर भी सफलता हाथ नहीं लगी. एक दिन राजा ने काफी सोचने के बाद प्रण किया कि वह अपनी मनोकामना के लिए ईश्वर की शरण में जाएगा.

राजा ने अपनी पटरानी जो की इश्वाकु वंश के राजा हरिशचंद्र की प्रिय पुत्री पद्मिनी के साथ वन की ओर तपस्या के लिए अग्रसर हुए. दोनों ने सारा राजपाट अपने मंत्रियों को सौंप कर तपस्या का प्रण किया कि जबतक उनकी इच्छा पूरी नहीं होगी तबतक वह ध्यान में रहेंगे. लेकिन हजारों साल बीत जाने के बाद भी राजा की इच्छा पूरी नहीं हुई. इस कठोर तपस्या के बाद सती अनुसूया ने पद्मिनी को मलमास की विशेषता बताई और इस सरल और कृपा बरसाने वाले व्रत के बारे में बताया. उन्होंने बताया कि इसमें श्री हरी का पूजन विशेष फलदायी होता है. सती अनुसूया ने बताया कि ये व्रत हर तीन वर्ष बाद आता है इसे माल मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पूर्ण विधि के साथ करना चाहिए. इस व्रत को सुनने के बाद राजा की महारानी ने इस व्रत को पूरी श्रद्धा के साथ किया. जिसके बाद उन्हें पुत्र सुख प्राप्त हुआ. तब से यह व्रत करने की प्रथा चली आ रही है.

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