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नवरात्रि के नौवें दिन ऐसे करें मां सिद्धिदात्री की पूजा, जानिए महत्व और कथा

नई दिल्ली: नवरात्रि का नौवां दिन देवी दुर्गा के नवम रूप माता सिद्धिदात्री को समर्पित होता है। माता सिद्धिदात्री को सभी सिद्धियों की देवी माना जाता है। उनकी कृपा से साधक को सभी प्रकार की सिद्धियों की प्राप्ति होती है। यह दिन साधकों के लिए बेहद खास होता है क्योंकि इस दिन की पूजा से […]

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  • October 11, 2024 8:17 am Asia/KolkataIST, Updated 2 months ago

नई दिल्ली: नवरात्रि का नौवां दिन देवी दुर्गा के नवम रूप माता सिद्धिदात्री को समर्पित होता है। माता सिद्धिदात्री को सभी सिद्धियों की देवी माना जाता है। उनकी कृपा से साधक को सभी प्रकार की सिद्धियों की प्राप्ति होती है। यह दिन साधकों के लिए बेहद खास होता है क्योंकि इस दिन की पूजा से हर मनोकामना पूरी हो सकती है। नवरात्रि के आखिरी दिन देवी की पूजा कर उन्हें विदाई दी जाती है, जो विजय और समृद्धि का प्रतीक मानी जाती है।

माता सिद्धिदात्री की पूजा विधि

1. स्नान और शुद्धिकरण: सबसे पहले प्रातःकाल स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें और पूजा स्थल को शुद्ध जल से साफ करें।

2. माता की मूर्ति या चित्र की स्थापना: माता सिद्धिदात्री की मूर्ति या चित्र को लाल कपड़े पर रखें और उनके सामने दीपक जलाएं।

3. पूजन सामग्री तैयार करें: पूजा के लिए फूल, धूप, चंदन, कुमकुम, फल, मिठाई, नारियल, और पान-सुपारी आदि रखें।

4. पूजा मंत्र और पाठ: दुर्गा सप्तशती या सिद्धिदात्री माता के मंत्रों का जाप करें। “ॐ सिद्धिदात्री नमः” मंत्र का जाप कम से कम 108 बार करें।

5. हवन करें: हवन सामग्री से हवन करें और देवी को प्रसन्न करने के लिए घी से आहुति दें।

6. कन्या पूजन: नवमी के दिन कन्या पूजन का विशेष महत्व होता है। नौ कन्याओं को आमंत्रित कर उनके पैर धोएं, उन्हें भोजन कराएं और उपहार दें।

माता सिद्धिदात्री के मंत्र

“सिद्ध गन्धर्व यक्षाघैरसुरैरमरैरपि।

सेव्यमाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥

वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।

कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्वनीम्॥”

माता सिद्धिदात्री की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, जब सृष्टि की रचना हो रही थी, तब भगवान शिव ने मां सिद्धिदात्री की पूजा की। मां ने भगवान शिव को अष्टसिद्धियों का वरदान दिया, जिससे भगवान शिव “अर्धनारीश्वर” बने, यानी आधे शिव और आधे पार्वती। इसके बाद से मां सिद्धिदात्री को सिद्धियों की देवी के रूप में पूजा जाने लगा। मां सिद्धिदात्री के आशीर्वाद से ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने सृष्टि का संचालन किया और संसार में जीवन का संचार हुआ। इस कथा से यह साबित होता है कि मां सिद्धिदात्री की कृपा से किसी भी कठिन से कठिन कार्य को संभव बनाया जा सकता है।

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