नई दिल्ली. गंगा दशहरा के बाद आने वाली एकादशी को निर्जला एकादशी कहा जाता है. हिंदू धर्म में निर्जला एकादशी का व्रत सबसे कठिन मान जाता है क्योंकि इस दिन आपको भोजन के साथ पानी का भी त्याग करना पड़ता है. शास्त्रों के अनुसार इस व्रत को करने से व्यक्ति के जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. इस दिन पूरे विधिविधान से भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. आज निर्जला एकादशी है ऐसी मान्यता है कि आज के दिन इस व्रत को पूरे विधिविधान से रखने से आपके जीवन के हर संकट दूर हो जाएंगे और जीवन में खुशहाली आएगी. ऐसे में हम आपको पूजा का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कथा के बारे में बताने जा रहे हैं.
निर्जला एकादशी का शुभ मुहूर्त
एकादशी 12 जून को शाम 06:27 से शुरू होगी
एकादशी 13 जून को 04:49 समाप्त हो जाएगी
निर्जला एकादशी 2019 की पूजा विधि
निर्जला एकादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर सन्नी करके व्रत का संकल्प कर लें. इसके बाद मंदिर व घर की सफाई करने के बाद गंगा जल से शुध्द करके पूजा की तैयारी करें. सबसे पहले मंदिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें औऱ भगवान को धूप, फल, फूल पूजा की सामग्री अर्पित करें. इसके बाद कथा पढ़े या सुनें. इसके बाद सारा दिन अन्न व जल दोनों ही ग्रहण नहीं करते हैं. शाम को तुलसी जी की पूजा करें. गरीब और जरूरतमंद को वस्त्र, खाना आदि दान करें. व्रत के अगले दिन ब्राह्मणों को भोजन कराएं और उसके बाद ही खुद भोजन और जल ग्रहण करें.
निर्जला एकादशी 2019 व्रत कथा
पुराणों की कथा के अनुसार एक बार जब महर्षि वेदव्यास पांडवों को चारों पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प करा रहे थे. उस समय महाबली भीम ने उनसे कहा कि पितामह आपने प्रति पक्ष एक दिन के उपवास रखने के लिए कहा है. मैं एक दिन तो एक वक्त भी भोजन के बिना नहीं रह सकता हूं. मेरे पेट में वृक नाम की अग्नि है, उसे शांत कराने के लिए मुझे कई लोगों के बराबर और कई बार भोजन ग्रहण करना पड़ता है. तो मैं क्या अपनी उस भूख की वजह से एकादशी जैसे पुण्य व्रत से वंचित रह जाऊंगा? इस पर महर्षि वेदव्यास ने भीम से बोले कि कुंतीनंदन भीम ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला नाम की एक ही एकादशी का व्रत रखो और तुम्हे साल की सारी एकादशियों का फल प्राप्त हो जाएगा. इस व्रत को करने से तुम्हे इस लोक में सुख, यश और मोक्ष प्राप्त होगा. यह सुनकर भीमसेन भी निर्जला एकादशी का विधिविधीन से व्रत करने को सहमत हो गए और समय आने पर यह व्रत को पूरा किया. इसलिए सालभर की एकादशियों का पुण्य लाभ देने वाली इस निर्जला एकादशी को पांडव एकादशी या भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है.
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