नई दिल्ली. नवरात्र हिन्दुओं का विशेष पर्व है, इस पावन अवसर पर मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-आराधना की जाती है. इसलिए यह पर्व नौ दिनों तक मनाया जाता है, वेद-पुराणों में मां दुर्गा को शक्ति का रूप माना गया है जो पाप का नाश करती हैं, नवरात्र के समय मां के भक्त उनसे […]
नई दिल्ली. नवरात्र हिन्दुओं का विशेष पर्व है, इस पावन अवसर पर मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-आराधना की जाती है. इसलिए यह पर्व नौ दिनों तक मनाया जाता है, वेद-पुराणों में मां दुर्गा को शक्ति का रूप माना गया है जो पाप का नाश करती हैं, नवरात्र के समय मां के भक्त उनसे अपने सुखी जीवन और समृद्धि की कामना करते हैं. नवरात्र एक साल में चार बार मनाई जाती है, नवरात्रि में कई जगहों पर मेलों का भी आयोजन किया जाता है. नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है, आइए आपको उनकी व्रत कथा के बारे में बताते हैं.
मान्यताओं के आधार पर पूर्वजन्म में मां ब्रह्मचारिणी पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं. भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए मां ब्रह्मचारिणी कठोर तपस्या करती है इसलिए इन्हें ब्रह्मचारिणी कहा जाता है. शास्त्रों और पौराणिक किताबों में ऐसा कहा गया है कि मां ब्रह्मचारिणी ने एक हजार वर्ष तक फल-फूल खाएं और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया. मां ने भगवान शिव को पाने के लिए कठिन उपवास रखे और खुले आकाश के नीचे धूप और बारिश को सहन किया.
पर्वतराज की पुत्री ने इस दौरान टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और लगातार भगवान शंकर की आराधना करती रहीं. जब इस कठोर तपस्या के बाद भी भगवान शिव उनसे खुश नही हुए तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए. ऐसा कहा जाता है कि पर्वतराज की पुत्री ने कई हजार सालों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं, जब मां ने सब कुछ खाना छोड़ दिया तो तब इनका नाम अपर्णा पड़ गया. कई सालों तक बिना खाए-पिये मां ब्रह्मचारिणी बहुत कमजोर हो गईं. आकाश लोक में मां की इस तपस्या को देखकर सभी देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने सरहाना की और मनोकामना पूर्ण होने का आशीर्वाद दिया.
नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा सुबह 04:36 से 05:24 तक करें, ये मुहूर्त पूजा के लिए बहुत ही शुभ है.
1- इस दिन सुबह जल्दी उठकर नहा लें और पूजा के स्थान को गंगाजल डालकर शुद्ध कर लें।
2- इसके बाद मंदिर में दीप जलाएं, मां दुर्गा का जल से अभिषेक करें।
3- मां दुर्गा को अर्घ्य दें, इसके बाद मां को अक्षत, सिन्दूर और लाल पुष्प अर्पित करें, प्रसाद के रूप में फल और मिठाई चढ़ाएं।
4- मां के सामने धूप, दीपक जलाकर दुर्गा चालीसा का पाठ करें और फिर मां की आरती करें। इसके बाद मां को प्रसाद या भोग भी लगाएं। यहाँ ध्यान दें मां को केवल सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है।