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Navratri 2018 : नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की करें कथा, होगी हर मनोकामना पूरी

Navratri 2018 : नवरात्रि मां दुर्गा के नौ स्वरूपों में दूसरे दिन मां तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है. इस देवी को संघर्ष और कठिन तपस्या के लिए जाना जाता है. देवी ब्रह्मचारिणी की कथा को जानकर भक्तों को अपना दूसरा नवरात्रि का उपवास करना चाहिए.

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vrat katha of maa Brahmacharini
  • March 19, 2018 8:42 am Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago

नई दिल्ली. नवरात्रि का पर्व 18 मार्च से शुरू हो गया है. नौ दिनों तक चलने वाले त्यौहार में मां दुर्गा नौ रूपों की पूजा की जाती है. पहले दिन मां शैलपुत्री और दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है. ब्रह्म का अर्थ है तपस्या व चारिणी का अर्थ है आचरण करने वाली देवी. मां ब्रह्मचारिणी अपने भक्तों की सदैव सुनती है इसीलिए इन्हें दुखों का निवारण करने वाली देवी भी कहा जाता है. आज सभी श्रद्धालुओं का दूसरा नवरात्र का व्रत है इस दिन सभी भक्तों को देवी ब्रह्मचारिणी की व्रत कथा जरूर पढ़नी चाहिए.

मां तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी व्रत कथा

ज्योतिषी के अनुसार बताया जाता है कि पूर्वजन्म में ब्रह्मचारिणी ने हिमालय के घर पुत्री के रूप में जन्म लिया था. देवी ब्रह्मचारिणी ने पति के रूप में भगवान शंकर को पाने के लिए कठिन तपस्या की थी. इनके इसी कठिन तप और जप से इनका नाम तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी पड़ा. इन्हें कठिन तपस्या के लिए जाना जाता है जिन्होंने भगवन शंकर को पाने के लिए असंभव तप किया. दरअसल इस देवी ने एक हजार वर्ष तक सिर्फ फल-फूल खाकर बिताए.

देवी ब्रह्मचारिणी ने हजारों साल भोले नाथ की तपस्या में गुजारे. इन दिनों इन्होंने शाक का निर्वहन किया. इस देवी ने अपनी तपस्या को किसी तूफान, बारिश व धूप से फीका नहीं पड़ने दिया. इसके साथ ही कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखे. कई साल तक देवी ब्रह्मचारिणी ने निर्जला व्रत किये. इन हजारों साल की तपस्या में देवी ने पत्ते बेल इत्यादि का निर्वहन किया.

जब सभी देवतागण ने इतनी कठिन तपस्या देखी और पाया कि इस असंभव तप से देवी का शरीर क्षीण हो गया है तो सभी देवतागण, ऋषियों और मुनि ने देवी की प्रशांसा की और कहा कि इस असंभव तप को आपके सिवा और कोई नहीं कर सकता था. इस कठिन तपस्या के बदले आपको आपकी मनोकामना परिपूर्ण होगी और भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे. जिसके बाद से तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी को कठिन परिश्रम और एकाग्रता का सार कहा जाता है. इन्होंने अपने भक्तों को कठिन संघर्षों का पाठ सिखाया है.

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