अध्यात्म

Navratri 2018: नवरात्रि के चौथे दिन देवी कुष्मांडा को चढ़ाएं ये फूल, दूर होंगे सभी कष्ट

नई दिल्ली: हिंदुओं का पावन पर्व नवरात्रि का आज चौथा दिन है. नवरात्रि का चौथा दिन देवी कुष्मांडा का होता है. आज के दिन देवी कुष्मांडा की पूजा की जाती है. पूरा संसार कूष्मांडा ही है. पौराणिक कथाओं के अनुसार कूष्मांडा देवी की आठ भुजाएं है. इसलिए इन्हें अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है. देवी की पूजा उनके महामंत्र के बिना बिल्कुल न करें. वहीं, मां कुष्मांडा के बीजमंत्र का भी जाप कर सकते हैं.

देवी कुष्मांडा की श्रद्धा से पूजा करने से शारीरिक और मानसिक विकार दूर होते हैं. मां कुष्मांडा की पूजा की विधि भी वैसी ही है जैसे शक्ति के अन्य रूपों की पूजा की जाती है. देवी को रात की रानी के फूल बेहद पसंद हैं.

पूजा में फूल जरूर रखें. सबसे पहले कलश और उसमें उपस्थि​त देवी-देवताओं की पूजा कीजिए. उसके बाद अन्य देवी-देवताओं की पूजा करें. इनके साथ ही देवी कुष्मांडा की पूजा कीजिए. पूजा की विधि शुरू करने से पहले देवी को रात की रानी के फूल चढ़ाएं. देवी कुष्मांडा की पूरी पूजा विधि, महामंत्र, बीजमंत्र और सूर्य को प्रसन्न करने वाले उपाय इस प्रकार जानिए.

कुष्मांडा देवी कौन हैं? 

ये नवदुर्गा का चौथा स्वरुप हैं. अपनी हल्की हंसी से ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इनका नाम कुष्मांडा पड़ा. ये अनाहत चक्र को नियंत्रित करती हैं. मां की आठ भुजाएं हैं इसलिए इन्हें अष्टभुजा देवी भी कहते हैं. ज्योतिष में मां कुष्मांडा का संबंध बुध ग्रह से है. पूजा का समय सुबह 7 बजे से दिन के 11.20 बजे तक पूजा का मुहूर्त है. ऐसे भक्त जो नियमानुसार पूजा करते हैं वह सुबह 11.20 तक पूजा की शुरुआत कर सकते हैं. बाकि भक्त दिन भर पूजा कर सकते हैं.

क्या है देवी कुष्मांडा की पूजा विधि ?

हरे कपड़े पहनकर मां कुष्मांडा का पूजन करें. पूजन के दौरान मां को हरी इलाइची, सौंफ और कुम्हड़ा अर्पित करें. इसके बाद उनके मुख्य मंत्र ‘ऊं कुष्मांडा देव्यै नमः’ का 108 बार जाप करें. चाहें तो सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ भी कर सकते हैं.

देवी कुष्मांडा उपासना का मंत्र

या देवी सर्वभूतेषू मां कुष्मांडा रूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
मां कुष्मांडा का विशेष प्रसाद

ज्योतिष के जानकारों की मानें तो मां को उनका उनका प्रिय भोग अर्पित करने से मां कुष्मांडा बहुत प्रसन्न होती हैं. मां कुष्मांडा को मालपुए का भोग लगाएं. इसके बाद प्रसाद को किसी ब्राह्मण को दान कर दें और खुद भी खाएं. इससे बुद्धि का विकास होने के साथ-साथ निर्णय क्षमता भी अच्छी हो जाएगी.

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Aanchal Pandey

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